Monday, 11 May 2020

गति (Motion)

 गति

 आदिश राशि : -  वह भौतिक राशियां जिनमें केवल परिमाण होता है दिशा नहीं    अदिश राशि कहलाती हैं जैसे द्रव्यमान , चाल, आयतन, कार्य , समय ,ऊर्जा आदि |
विद्युत धारा, दाब, ताप भीअदिश राशियां हैं |

सदिश राशि : - वह भौतिक राशियां जिनमें परिमाण के साथ-साथ दिशा भी रहती है और जो योग के निश्चित नियमों के अनुसार जोड़ी जाती हैं उन्हें सदिश राशि कहते हैं जैसे वेग, विस्थापन, बल , त्वरण आदि |

दूरी: -  किसी दिए गये समय अंतराल में वस्तु के द्वारा तय किए गए मार्ग की लंबाई को दूरी कहते हैं यह एक अदिश राशि है यह हमेशा धनात्मक होती है।

 विस्थापन: एक निश्चित दिशा में दो बिंदुओं के बीच की लंबवत न्यूनतम दूरी को विस्थापन कहते हैं यह एक सदिश राशि है इसका मात्रक एस आई पद्धति में मीटर है विस्थापन धनात्मक ऋणत्मक तथा शून्य कुछ भी हो सकता है |

 चाल:-  किसी भी वस्तु के द्वारा प्रति सेकंड तय की गई दूरी को चाल कहते हैं चाल एक अदिश राशि है इसका मात्रक मीटर प्रति सेकंड होता है |

वेग:-  किसी वस्तु के विस्थापन की दर को या एक निश्चित दिशा में प्रति सेकेंड वस्तु द्वारा तय की गई दूरी को वेद कहते हैं यह एक सदिश राशि होता है इस का एस आई  पद्धति मात्रक मीटर प्रति सेकंड है ।

त्वरण:- किसी वस्तु के वेग में परिवर्तन की दर को त्वरण कहते हैं  त्वरण एक सदिश राशि है इसका एस आई पद्धति में मात्रक मीटर प्रति सेकंड स्क्वायर होता है |  यदि समय के साथ वस्तु का वेग घटता है तो त्वरण ऋण आत्मक होता है और इसे मंदन कहते हैं तथा यदि समय के साथ वस्तु का वेग बढ़ता है तो त्वरण धनात्मक होता है एवं यदि समय के साथ वस्तु के बैग में कोई परिवर्तन नहीं होता है तो उसका त्वरण शून्य होता है |

वृत्तीय गति: - जब कोई वस्तु किसी वृत्ताकार मार्ग पर गति करती है तो उसकी गति को वृत्ति गति कहते हैं यदि वह एक समान चाल से गति करती है तो उसकी गति को एक समान वृत्तीय गति कहते हैं |
समरूप वृत्तीय गति एक  वेग की दिशा प्रत्येक बिंदु पर बदल जाती है |

कोणीय वेग: - वृत्ताकार मार्ग पर गतिशील कण को वृत्तत्वरित गति होती है क्योंकि के केंद्र से मिलाने वाली रेखा एक सेकंड में जितने कोण से घूम जाती है उसे का उसका का कोणीय वेग कहते हैं इसे प्रायः ओमेगा से प्रदर्शित करते हैं w = 2πn = 2π/T

 न्यूटन का गति विषयक नियम : - न्यूटन को भौतिकी का पिता भी कहा जाता है इन्होंने अपनी पुस्तक प्रिंसिपिया में सबसे पहले गति के नियम का प्रतिपादन किया था |

 न्यूटन का प्रथम गति विषयक नियम : - यदि कोई वस्तु स्थिर अवस्था में तो वह स्थिर अवस्था में ही रहेगी अथवा यदि वह एक समान चाल से सीधी रेखा में चल रही है तो वह उसी दिशा में चलती रहेगी जब तक कि उस पर कोई बाहरी बल लगाकर उसकी वर्तमान अवस्था में परिवर्तन न किया जाए

न्यूटन के प्रथम नियम को गैलीलियो का नियम अथवा जड़त्व का नियम अथवा विराम का नियम भी कहा जाता है |
बाहरी  बल के अभाव में किसी वस्तु का अपनी विराम अवस्था अथवा समान गति की अवस्था बनाए रखने की घटना को जड़त्व कहते हैं |

प्रथम नियम से ही बल् की  परिभाषा मिलती है |
बल की परिभाषा बल वह बाहरी कारक है जो किसी वस्तु की प्रारंभिक अवस्था में परिवर्तन करता है अथवा परिवर्तन करने की चेष्टा करता है बल  एक अदिश राशियां इसका एस आई पद्धति में मात्रक न्यूटन होता है |

जड़त्व के कुछ उदाहरण : 1- ठहरी हुई मोटर  या रेलगाड़ी के अचानक चल देने पर जड़त्व के कारण उसमें बैठे यात्री पीछे की ओर झुक जाते हैं |
2- चलती हुई मोटर कार के अचानक रुकने पर उसमें बैठे हुए यात्री आगे की ओर झुक जाते हैं |
3- जब हम किसी कपड़े या कंबल को हाथ से पकड़ कर या डंडे से पीटकर पीटते हैं तो धूल के कण बाहर गिरने लगते हैं |

संवेग : - किसी वस्तु के द्रव्यमान तथा वेग के गुणनफल को संवेग कहा जाता है |
अर्थात संवेग = वेग x द्रव्यमान     
संवेग एक सदिश राशि है इसका एस आई पद्धति में मात्रक किलोग्राम मीटर प्रति सेकंड है |

न्यूटन का गति विषयक द्वितीय नियम:-  इस नियम के अनुसार किसी वस्तु के संवेग में परिवर्तन की दर उस वस्तु पर आरोपित बल के समानुपाती होती है तथा संवेग परिवर्तन बल की दिशा में होता है यदि किसी वस्तु पर आरोपित बल F  बल की दिशा में उत्पन्न त्वरण a  तथा वस्तु का द्रव्यमान  m  है तो न्यूटन के दूसरे नियम के अनुसार
F = m x a      अर्थात न्यूटन के दूसरे नियम से ही बल का व्यंजक प्राप्त होता है |
न्यूटन का प्रथम नियम दूसरे का ही एक अंग है यह भी ध्यान रखने योग्य बातें है |

न्यूटन का गति विषयक तृतीय नियम    :  इस  नियम के अनुसार प्रत्येक क्रिया के बराबर लेकिन विपरीत दिशा में प्रक्रिया होती है |
 जैसे : - बंदूक से गोली चलाने पर चलाने वाले को पीछे की ओर धक्का लगता है,  जब नाव से किनारे पर कूदते हैं तो नौका पीछे की ओर हट जाना

संवेग संरक्षण का सिद्धांत  : - यदि  कणों के   समूह या  पर कोई बाहरी बल ना लग रहा हो तो उस निकाय का कुल संवेग नियत रहता है अर्थात टक्कर के बाद और टक्कर के पहले का  संवेग समान रहता है इसे ही संवेग संरक्षण के नियम से कहा  जाता है |

आवेग:-  जब कोई बाह्य बल किसी वस्तु पर कुछ समय के लिए कार्य करता है तो बल तथा समय अंतराल के गुणनफल को आवेग  कहते हैं दूसरे शब्दों में संवेग परिवर्तन को  आवेग कहते हैं आवेग एक सदिश राशि है इसका मात्रक न्यूटन सेकंड होता है तथा इसकी दिशा वही होती है जो बल की दिशा होती है |

 अभिकेंद्रीय बल: - जब कोई वस्तु किसी वृत्ताकार मार्ग पर चलती है तो उस वस्तु पर  केंद्र की ओर एक   बल कार्य  करता है इस बल को ही अभिकेंद्र बल के नाम से जाना जाता है |
 इस बल के अभाव में वस्तु  वृत्ताकार मार्ग मैं नहीं चल सकती है |

 अपकेंद्रीय बल: - अजड़त्व  फ्रेम में न्यूटन के नियम को लागू करने के लिए कुछ ऐसे बलों की कल्पना करनी होती है जिन्हें परिवेश में किसी पिंड से संबंधित नहीं किया जा सकता है इन बलों को छद्म बल अथवा जड़त्व बल का जाता है अपकेंद्रीय बल एक ऐसा ही  बल   है   इसकी दिशा   अभिकेंद्र बल  की दिशा के विपरीत होती है | 

जैसे  कपड़ा सुखाने की मशीन  ,  मक्खन निकालने की मशीन आदि अपकेंद्रीय बल के सिद्धांत पर ही कार्य करते हैं |

नोट वृत्तीय पथ पर गतिमान वस्तु पर कार्य करने वाले अभिकेंद्रीय बलों की प्रतिक्रिया होती है जैसे मौत के कुएं में कुएं की दीवार मोटरसाइकिल पर अंदर की ओर क्रिया बल लगाती है जबकि इसका प्रतिक्रिया बल मोटरसाइकिल द्वारा कुएं की दीवार पर बाहर की ओर कार्य करता है अर्थात कभी-कभी बाहर की ओर कार्य करने वाले इस प्रतिक्रिया बल को भ्रमवश  अपकेंद्रीय    बल कह दिया     जाता है जो कि गलत है |

 बल आघूर्ण  : -  बल द्वारा एक पिंड को एक   अक्ष  के   परिता     घुमाने    की प्रवृत्ति को बल आघूर्ण  कहा जाता है   किसी       अक्ष    के     परिता एक  बल का बल आघूर्ण   उस बल      के परिमाण तथा   अक्ष से       बल की क्रिया रेखा के बीच की लंबवत दूरी के गुणनफल के बराबर होता है | जिसका मात्रा के न्यूटन मीटर होता है |
सरल मशीन: -    यह बल आघूर्ण  के  सिद्धांत पर कार्य करती है सरल मशीन एक ऐसी युक्ति है जिसमें अपनी सुविधानुसार किसी सुविधाजनक बिंदु पर बल लगाकर किसी अन्य बिंदु रखे हुए भार को उठाया जाता है जैसे उत्तोलक, घिरनी, आनत तल, स्क्रु जैक आदि |

उत्तोलक:- उत्तोलक एक सीधी या टेढ़ी रक्षा होती है जो किसी निश्चित बिंदु के चारों ओर स्वतंत्रता पूर्वक घूम सकती है उत्तोलक में तीन बिंदु होते हैं जिन्हें निम्न प्रकार समझ सकते हैं |

आलंब: -  जीत निश्चित बिंदु के चारों ओर उत्तोलक के चरण स्वतंत्रता पूर्वक घूम सकती है उसे ही आलंब कहा जाता है

आयास:- उत्तोलक को उपयोग में लाने के लिए उस पर जो बल लगाया जाता है उसे आयास कहा जाता है |

भार: - उत्तोलक के द्वारा जो बोझ उठाया जाता है अथवा रुकावट हटाई जाती है उसे ही  भार कहा जाता है |

 उत्तोलक के प्रकार:-    उत्तोलक तीन प्रकार के होते हैं

प्रथम श्रेणी के उत्तोलक:-  इस वर्ग के  उत्तोलक में आलंब,  आयास तथा भार के बीच स्थित होता है इस प्रकार के उत्तोलक ओं में यांत्रिक लाभ एक से अधिक एक के बराबर अथवा एक से कम भी हो सकता है
जैसे-  कैंची, पिलास ,  कील उखाड़ने की मशीन,  सीस झूला, साइकिल का ब्रेक, हैंड पंप

 द्वितीय श्रेणी के उत्तोलक:-  इस श्रेणी के उत्तोलक में आलम्ब  तथा आयास  के बीच में भार होता है इस प्रकार के उत्तोलक ओं में यांत्रिक लाभ हमेशा एक से अधिक होता है
जैसे - सरौटा ,  नींबू निचोड़ ने की मशीन,  1 पहिया की कूड़ा ढोने वाली गाड़ी |

 तृतीय श्रेणी के उत्तोलक: -  इस वर्ग के उत्तोलक ओ में आलम्ब ,भार के बीच में आयास होता है इसका यांत्रिक लाभ हमेशा एक से कम होता है |
जैसे-  चिमटा,  मनुष्य का हाथ

 गुरुत्व केंद्र: - किसी वस्तु का गुरुत्व केंद्र वह बिंदु है जहां बस्तु का समस्त भार  कार्य करता है चाहे वस्तु जिस स्थिति में रखी जाए वस्तु का भार गुरुत्व केंद्र से ठीक नीचे की ओर कार्य करता है अतः गुरुत्व केंद्र पर वस्तु के
भार  के बराबर उपरिमुखी  बल लगाकर हम वस्तु को संतुलित रख सकते हैं |

संतुलन के प्रकार : -  संतुलन तीन प्रकार के होते हैं  स्थाई ,अस्थाई तथा उदासीन

  स्थाईसंतुलन : - यदि किसी वस्तु को उसकी संतुलित स्थित से थोड़ा विस्थापित कर दिया जाए और बल हटाने पर वह फिर से पूर्व स्थिति में आ जाए तो ऐसी संतुलन की स्थिति को स्थाई संतुलन कहते हैं |

 अस्थाई संतुलन:-  यदि किसी वस्तु को उसकी संतुलन अवस्था से थोड़ा सा भी   विस्थापित करके छोड़ दिया जाए वह पुनः संतुलन की स्थिति में ना आ पाए तो इसे अस्थाई संतुलन कहते हैं |

 उदासीन संतुलन :-  यदि वस्तु को संतुलन की स्थिति में थोड़ा सा भी   विस्थापित करने पर उसका गुरुत्व केंद्र उसी ऊंचाई पर बना रहता है तथा छोड़ देने पर वस्तु अपनी नई स्थिति में संतुलित हो जाती है तो उसका संतुलन उदासीन संतुलन कहलाता है |

 स्थाई संतुलन की शर्तें : -
किसी वस्तु के स्थाई संतुलन के लिए 2 शर्ते अति महत्वपूर्ण है : -
1- वस्तु का गुरुत्व केंद्र अधिकाधिक नीचे होना चाहिए |
2- गुरुत्व केंद्र से होकर जाने वाली ऊर्ध्वाधर रेखा वस्तु के आधार से गुजरने चाहिए |

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