Tuesday 26 May 2020

COLLOIDAL STATE कोलाइडी विलयन

 कोलाइड की परिभाषा दीजिए कोलाइडी अवस्था से आप क्या समझते हैं ?

 इस प्रकार के विलयन में पदार्थ के कणों का व्यास 10 ^(-4 )से 10^(-7) सेंटीमीटर के बीच होता है तथा विलायक के कणों का व्यास 10 ^(-4 )से 10^(-7)सेंटीमीटर के बीच  होता है आंखों से समांग दिखते हैं परंतु माइक्रोस्कोप से देखने पर विषमांगता प्रकट होती है तथा यह विलेय, विलायक के आकार के कारण होती है यह विलयन जन्तु झिल्ली जैसे कि चर्म पत्र द्वारा विसरित नहीं होते हैं विलयन की  इस अवस्था  को कोलाइडी अवस्था या कलील अवस्था या सौल कहते हैं जैसे गोंद, सरेश, स्टार्च आदि कोलाइडी विलयनबनाते हैं

कोलाइड और क्रिस्टलाभ  आप से क्या समझते हैं ?

कोलाइड वे पदार्थ जिनके विलयन चर्म  पत्र द्वारा विसरित        नहीं होते हैं अर्थात नहीं छनते हैं कोलाइड कहलाते हैं |
 क्रिस्टलाभ  वे पदार्थ जिनके विलयन तीव्र गति से चर्म पत्र द्वारा छन जाते हैं क्रिस्टलाभ कहलाते हैं

जैसे दूध, मक्खन, दही, बादल, धूम्र ,  आइसक्रीम, गोंद, सोडियम पामीटेट के रक्त, कोहरा कोलाइडी विलयन बनाते हैं

 यूरिया, शर्करा, सोडियम प्रोपियोनेट क्रिस्टलाभ विलयन बनाते है

कोलाइडी विलयन की परिक्षिप्त  अवस्था तथा परिक्षेपण माध्यम से क्या समझते हो

 कोलाइडी विलयन दो प्रावस्था का विषमांग  मिश्रण कहा जाता है जिस में विलेय तथा विलायक के कण मिले होते हैं कोलाइडी विलयन में विलेय सील पदार्थ के कणों की प्रावस्था को परिक्षिप्त प्रावस्था कहते हैं तथा उस विलायक माध्यम को जिसमें यह    कण      फैले होते              हैं    परिक्षेपण माध्यम कहते हैं |

वास्तविक, कोलाइडी,  निलंबन विलयन में अंतर स्पष्ट कीजिए

वास्तविक विलयन समांग मिश्रण जिसमें विलेय विलायक के कणों का आकार लगभग समान होता है  चर्म पत्र एवं जंतु झिल्ली दोनों से छन जाते हैं जाते हैं | आँख और सूक्ष्मदर्शी यंत्र से दिखाई नहीं देते हैं इनकी सतह  बड़ी नहीं होती है इनके अणुभर  कम होते हैं परासरण दाब अधिक होता है इनका रंग पदार्थ के आयन की प्रकृति पर निर्भर करता है इनका स्कंदन आसानी पूर्वक नहीं होता है यह आयनन होने पर कणों  पर आवेश आ जाता  है |



कोलाइडी विलयन विषमांगी मिश्रण जिसमें              विलेय कणों का      आकार                10 ^(-4 )से 10^(-7) सेंटीमीटर के बीच होता है तथा विलायक के कणों का आकार10 ^(-7 )से 10^(-8) सेंटीमीटर के बीच होता है यह  कागज     पत्र    से छन जाते हैं               लेकिन जंतु झिल्ली  से नहीं          छनते           हैं अति सूक्ष्म दर्शी यंत्र के द्वारा प्रकाश बिंदु के रूप में विलेय कण दिखाई देते हैं इनकी सतह बड़ी होती है यह टिंडल प्रभाव, ब्राउनी गति, वैद्युत कण संचलन प्रदर्शित करते हैं इनका स्कंदन हो जाता है |


 निलंबन
 विषमांगी मिश्रण जिसमें विलय के कणों का आकार 10 ^(-3 )से 10^(-4) सेंटीमीटर तथा विलायक के कणों का आकार 10 ^(-7 )से 10^(-8) सेंटीमीटर होता है यह छनना             पत्र तथा जंतु झिल्ली     दोनों से नहीं छनते                     हैं आंख और सूक्ष्म दर्शी दोनों से दिखाई देते हैं |

कोलाइडी विलयन के मुख्य गुण क्या है ?

कोलाइडी विलयन के मुख्य गुण
1- कोलाइडी विलयन टिंडल प्रभाव को प्रदर्शित करता है
2-  कोलाइडी विलियन वैद्युत कण संचलन को प्रदर्शित करता है कोलाइडी विलियन का स्कंदन हो जाता है

कोलाइडी विलियन  का वर्गीकरण कीजिए | अथवा द्रव स्नेही तथा द्रव  विरोधी  कोलाइड किसे कहते हैं समझाइए |


 कोलाइडी विलयन  को सुगमता के लिए निम्न दो वर्गों में विभाजित किया गया है
 1- द्रव स्नेही कोलाइड
2- द्रव विरोधी कोलाइड
द्रव स्नेही कोलाइड पदार्थ जो विलायक के संपर्क में आने पर तुरंत ही कोलाइडी कणों में विभाजित होकर कोलाइडी विलयन बना लेते हैं द्रव स्नेही कोलाइड कहलाते हैं | यह विलयन स्थाई होते हैं और विद्युत अपघट्य का विलयन मिलाने पर आसानी से  अवक्षेपित         नहीं होते हैं            अवक्षेपित करने                                                                              के पश्चात इन्हें फिर से कोलाइडी अवस्था में लाया जा सकता है इसलिए इनको उत्क्रमणीय कोलाइड                भी कहते हैं जब विलायक जल होता है तो यह जल स्नेही कोलाइड कहलाते हैं स्टाच ,प्रोटीन, जिलेटिन, इस प्रकार के कोलाइडी विलयन बनाते हैं

द्रव विरोधी कोलाइड    वे         पदार्थ जो विलायक के संपर्क में आने पर तुरंत ही कोलाइडी विलयन नहीं बनाते हैं द्रव विरोधी कोलाइड कहलाते हैं यह कोलाइडी विलयन अस्थाई होते हैं और किसी विद्युत अपघट्य का विलयन मिलाने पर आसानी से अवक्षेपित                                 हो जाते हैं अवक्षेपित होने के बाद इन्हें फिर से आसानी  पूर्वक कोलाइडी अवस्था में नहीं लाया जा सकता इसलिए इन्हें अन उत्क्रमणीय कोलाइड  विलयन कहते हैं जब विलायक जल होता है तो यह जल विरोधी कोलाइड कहलाते हैं  |
 धातु सल्फाइड, धातु हाइड्रोक्साइड आदि इस प्रकार के कोलाइडी विलयन बनाते हैं

कोलाइडी विलयन बनाने की विधियां :

 कोलाइडी विलयन बनाने की मुख्य विधियां निम्न

1- परिक्षेपण विधियां
 2- संघनन विधियां

प्रक्षेपण विधियां 

इन विधियों में पदार्थ के बड़े आकार वाले कणों को विभाजित कर कोलाइडी आकार के कणों में बदला जाता है इस प्रकार की मुख्य विधियां निम्नलिखित हैं

1-यांत्रिक परिक्षेपण 
इस विधि में पदार्थ को कोलाइडी चक्की में पीस कर कोलाइडी कणों में विभक्त कर लिया जाता है चक्की के दोनों पाट विपरीत दिशा में अत्यधिक वेग लगभग 700 चक्कर प्रति मिनट पर घूम रहे होते हैं इस विधि से पेंट वार्निश , टूथपेस्ट तथा छापेखाने की सिहाई आदि बनाए जाते है |

2-पेप्टीकरण विधि 
पेप्टीकरण विधि की क्रिया स्कंदन के विपरीत है इसमें ताजा बना हुआ अवक्षेप       को    एक                     तीसरे पदार्थ की सहायता से फिर से कोलाइडी अवस्था में परिवर्तित किया जाता है साधारणतया इस विधि में किसी ताजे  अवक्षेप       को किसी विद्युत अपघट्य के      तनु विलयन        के साथ हिलाने पर कोलाइडी विलयन प्राप्त होते हैं |
जैसे कि फेरिक हाइड्रॉक्साइड के ताजे  अवक्षेप में फेरिक क्लोराइड का तनु विलयन मिला देने से लाल रंग का फेरिक हाइड्रोक्साइड का कोलाइडी विलयन प्राप्त हो जाता है

3- वैद्युत परिक्षेपण या ब्रीडिंग आर्क  विधि
इस विधि में धातु के दो        बड़ी छड़ों                                 को बर्फ से ठंडा किए गए क्षार मिश्रित जल में डुबोते हैं और विद्युत धारा प्रवाहित करते हैं |  छड़ों के बीच आर्क  बनते ही धातु वाष्प  में परिवर्तित हो जाती है यह वाष्प  ठंडे जल में संगठित होकर कोलाइडी विलयन बना देती है सोना, चांदी, प्लैटिनम आदि धातुओं के कोलाइडी विलयन इसी   विधि      के        द्वारा      बनाए      जाते         हैं |                             
                                             

संघनन विधि

 इस विधि में छोटे आकार के कणों को संगठित करके कोलाइडी  आकार के कणों में बदला जाता है इसके अंतर्गत निम्न रासायनिक विधियां आती है

1- जल अपघटन विधि
 क्षीण धन  विद्युत धातु  जैसे आयरन, एलमुनियम, क्रोमियम, टिन  के ऑक्साइड  और हाइड्रोक्साइड के साल उनके लवणों के जल अपघटन द्वारा बनाए जाते हैं जैसे फेरिक क्लोराइड के जलीय विलयन को उबालने पर फेरिक हाइड्रोक्साइड का       भूरा            कोलाइडी विलयन प्राप्त होता है |

2-ऑक्सीकरण विधियां
इस विधि द्वारा सल्फर ,आयोडीन आदि आधातु  तत्वों पर कोलाइडी विलयन प्राप्त किए जाते हैं जैसे नाइट्रिक अम्ल और सल्फ्यूरिक अम्ल आदि में H2S गैस प्रवाहित किए जाने पर sulphar                    का कोलाइडी विलयन प्राप्त हो जाता है |


3-अपचयन अभिक्रिया
इस विधि में धातु लवण के विलयन में कोई अपचायक मिलाए जाने पर धातु का कोलाइडी विलयन बनता है विधि पर सोना ,चांदी ,प्लेटिनम आदि धातु के कोलाइडी विलयन बनाए जाते हैं
 जैसे गोल्ड क्लोराइड  विलयन  का स्टैनस क्लोराइड द्वारा अपचयन करके गोल्ड साल प्राप्त होता है

 4-उभय अपघटन विधि
इस विधि द्वारा धातु  सल्फाइड ओके कोलाइडी विलयन प्राप्त किए जाते हैं
जैसे आर्सेनियस ऑक्साइड के ठंडे जलीय विलयन में धीरे-धीरे हाइड्रोजन सल्फाइड गैस प्रवाहित करने पर पीले रंग का As2S3  साल प्राप्त होता है |


 5-विलायक विनिमय  विधि
इस विधि में पदार्थ का विलयन ऐसे विलायक में बनाया जाता है जिसमें वह बहुत अधिक विलय होता है और फिर विलयन को ऐसे विलायक में मिलाया जाता है जिसमें यह बहुत कम विलय होता है इससे उस पदार्थ का कोलाइडी विलयन बन जाता है

 अपोहन कौन से क्या समझते हैं इसका क्या महत्व है 

यह कोलाइडी विलयन के शोधन की एक विधि है प्रक्रम जिसमें एक कोलाइडी विलयन का शोधन चर्म पत्र झिल्ली में से प्रसरण किया जाता है अपोहन  कहते हैं | अपोहन  क्रिया इस तथ्य पर आधारित है कि घुलीत  पदार्थ के अणु और आयन चर्म पत्र झिल्ली से सरलता पूर्वक निकल जाते हैं जबकि कोलाइडी कण उसमें से नहीं निकल पाते हैं या कठिनाई से निकलते हैं इस प्रकरण में चर्म पत्र झिल्ली का एक थैला या बेलनाकार पात्र जिसे   अपोहक            कहते हैं लिया जाता है इस थैले के  पात्र में अशुद्ध कोलाइडी विलयन भर कर इसे एक बड़े जार या बी कर में लटका देते हैं और इसमें लगातार जल का प्रवाह करते रहते हैं इससे वैद्युत अपघटय  के कण चर्म  पत्र झिल्ली मैं  से निकलकर जल के साथ प्रवाहित हो जाते हैं और कोलाइडी विलयन पात्र में ही रह जाता है |



टिंडल प्रभाव 
देखा जाता है कि किसी अंधेरे कमरे में प्रकाश की किरण के मार्ग में कमरे की वायु में उपस्थित धूल के कण चमकने लगते हैं इसी संदर्भ में अब प्रकाश की किरण शुद्ध जल या नमक के विलयन में प्रवाहित की जाती है तो प्रकाश की किरण का मार्ग अद्रश्य रहता है लेकिन जब प्रकाश की किरण कोलाइडी विलयन में प्रवाहित करते हैं तो इसका मार्ग दिखाई देता है जिसमें धूल के कणों के स्थान पर कोलाइडी कणों त्वरित होते हुए दिखाई देते हैं अर्थात जब प्रकाश की किरणों को कोलाइडी विलयन से प्रवाहित करते हैं तो प्रकाश किरण का मार्ग द्रस्य                           हो जाता है इस प्रकार के प्रकाशीय प्रभाव को टिंडल प्रभाव कहा जाता है।



 ब्राउनी गति 
जब कोलाइडी विलयन का अवलोकन अति सूक्ष्मदर्शी  से किया जाता है तो कोलाइडी कण  आगे पीछे चलते दिखाई देते हैं यह कण             सदा तीव्र गति से टेढ़े मेढ़े अर्थात जिगजैग तरीके से सभी दिशाओं में चलते रहते हैं कोलाइडी कणों का तीव्र गति  के साथ इस प्रकार गति करना ब्राउनी गति कहलाता है यह गति कोलाइडी कणों के परिक्षेपण माध्यम के साथ टकराने से उत्पन्न होती है सर्वप्रथम इस गति का निरीक्षण र्राबर्ट    ब्राउन ने             किया था इसीलिए इसको ब्राउनी गति कहते हैं

वैद्युत कण संचलन
 कोलाइडी कणों पर धनात्मक अथवा ऋण आत्मक वैद्युत आवेश होता है जब किसी कोलाइडी विलयन को वैद्युत क्षेत्र में रखा जाता है तो धन आवेशित या ऋण आवेशित कण विपरीत आवेश वाले इलेक्ट्रोड की ओर चलने लगते हैं और उन पर पहुंचकर उदासीन हो जाते हैं कोलाइडी कणों का वैद्युत क्षेत्र में विपरीत इलेक्ट्रॉनों की ओर अभिगमन करना वैद्युत कण संचलन कहलाता है कोलाइडी कणों के कैथोड की ओर अभिगमन को धन कण  संचरण और एनोड की ओर अभिगमन को   ऋण    कण       संचरण         कहा जाता है  |



 स्कंदन 
कोलाइडी कणों पर समान वैद्युत आवेश होने के कारण वे एक-दूसरे से दूर रहते हैं अतः किसी कोलाइडी विलयन को स्थाई बनाने के लिए इसमें उचित विद्युत अपघट्य की अल्प मात्रा मिलाई जाती है लेकिन इसकी अधिक मात्रा को मिलाने पर उसे प्राप्त विपरीत आवेश वाले आयन कोलाइडी कणों को उदासीन कर देते हैं यह उदासीनीकरण ब्राउनी गति के कारण एक-दूसरे से टकराकर संयुक्त होकर बड़े-बड़े कण बना लेते हैं जो अवक्षेप  के रूप में नीचे बैठ जाते हैं यह घटना स्कंदन कहलाती है |
जैसे आरसेनिय सल्फाइड के कोलाइडी विलयन में बेरियम क्लोराइड का आधिक्य  मिलाए जाने पर                          साल स्कंदित  हो जाता है यह बेरियम    आयन      का धन आवेश      As2S3  के ऋण    आवेश                           को        उदासीन    कर                        देता है और यह उदासीन हो जाने से संयुक्त होकर नीचे बैठ जाते हैं
 भिन्न-भिन्न विद्युत अपघट्य की स्कंदन गति हार्डी शुलझे के अनुसार होती है

 पेप्टिकरण
 कोलाइडी विलयन के अवक्षेपण को सकंदन कहते हैं |    पेप्टीकरण   स्कंदन की विपरीत क्रिया है इस प्रक्रम द्वारा किसी  ताजे अवश्य को पुनः कोलाइडी अवस्था में बदला जाता है दूसरे शब्दों में पेप्टीकरण किसी स्कंदित  साल का पुनः परिक्षेपण है जैसे फेरिक हाइड्रोक्साइड के ताजे अवक्षेपमें कुछ मात्रा फेरिक क्लोराइड विलयन की मिलाने पर वह पुनः कोलाइडी विलयन बना लेता है


हार्डी शुलझे नियम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए 

विद्युत अपघट्य के मिलाने पर किसी कोलाइडी विलयन के स्कंदन के संबंध में हार्डी शुलझे ने निम्न दो नियम दिए जिन्हें हार्डी शुलझे के नियम के नाम से जाना जाता है
कोलाइडी विलयन के स्कंदन के लिए मिलाए गए विद्युत अपघट्य आयन सक्रिय होते हैं जिनका आवेश कोलाइडी कणों के आदेश के विपरीत होता है
विद्युत अपघटय की स्कंदन  स्कंदित  करने वाले आयन की संयोजकता  पर निर्भर करती है समान  संयोजकता वाले आयनों की स्कंदन सकती समान होती है स्कंदन आयन की संयोजकता बढ़ने पर उसकी शक्ति भी बढ़ जाती है अर्थात इस नियम के अनुसार किसी विद्युत अपघट्य आयनों की स्कंदन  शक्ति  आयन की संयोजकता बढ़ने के साथ बढ़ती है |


कोलाइड के रक्षण से आप क्या समझते हैं

जब किसी द्रव विरोधी कोलाइड में कुछ मात्रा द्रव स्नेही कोलाइड विलयन  की मिला दी जाती है तो   द्रव विरोधी कोलाइड का                                         स्कंदन रुक जाता है अर्थात उसका स्थायित्व बढ़ जाता है यह प्रक्रम रक्षण कहलाता है | वे  द्रव  स्नेही कोलाइड जिनहे  मिलाए जाने पर द्रव विरोधी कोलाइड विलयन का स्थायित्व बढ़ जाता है रक्षक अथवा रक्षी कोलाइड कहलाते हैं |
                      इस प्रकार प्राप्त द्रव विरोधी कोलाइड रक्षित कोलाइड कहलाता है जैसे सोने के द्रव विरोधी कोलाइड विलयन में सोडियम क्लोराइड विलयन मिला देने पर यह स्कंदित हो जाता है लेकिन इस कोलाइडी विलयन में कुछ मात्रा जिलेटिन की मिलाने पर सोडियम क्लोराइड का प्रभाव नष्ट हो जाता है यहां जिलेटिन रक्षी कोलाइड के रूप में कार्य करता है |

स्वर्ण संख्या की परिभाषा दीजिए  | या स्वर्ण संख्या पर संक्षिप्त टिप्पणी  लिखिए |

विभिन्न द्रव  स्नेही कोलाइड  की रक्षण शक्ति अलग अलग होती है द्रव स्नेही कोलाइड ओं की रक्षण शक्ति को व्यक्त करने के लिए वैज्ञानिक जिग्मोंडी  ने एक विशिष्ट संख्या निर्धारित की जिसे स्वर्ण संख्या कहते हैं इसकी परिभाषा निम्न प्रकार दी जा सकती है
         किसी द्रव स्नेही अथवा रक्षी कोलाइड की स्वर्ण संख्या उस कोलाइड की शुष्क अवस्था में मिलीग्राम में वह कम से कम मात्रा है जो 10 मिली सोने के कोलाइडी विलयन में मिलाने पर इस कोलाइड  के सोडियम क्लोराइड के 10% विलयन के एक मिली द्वारा स्कंदन से रोकती है |
नोट :  स्कंदित होने पर सॉल लाल रंग से नीले रंग में परिवर्तित हो जाता है |

कोलाइडी रसायन के अनुप्रयोग

औषधियों में 
बहुत सी औषधियां कोलाइडी अवस्था में अधिक प्रभावी होती हैं क्योंकि इस अवस्था में इनका अधिशोषण तथा पाचन सरलता पूर्वक हो जाता है जैसे आरजिरोल तथा प्रोटारगल  चांदी से रक्षित कोलाइडी विलयन है |

धुए अवक्षेपण में 
धूवां  कार्बन व अन्य कणों का वायु में एक कोलाइडी तंत्र होता है इन कणों को प्रथक करने के लिए धूवां  एक स्तंभ में से प्रवाहित किया जाता है जिसमें धनात्मक आवेश वाला धातु का गोला लटकता रहता है यहां कार्बन के ऋण आत्मक कण उदासीन  होकर अवक्षेपित जाते हैं और चिमनी से गर्म वायु ही बाहर निकलती है |

मलसे  गंदगी पृथक करने में 
मल में गंदगी के कारण ऋण आत्मक कोलाइड के रूप में उपस्थित होते हैं यह एनोड पर अवक्षेपित हो जाते हैं |

रबड़ उद्योग में 
रबड़ जल में उपस्थित ऋण आत्मक कणों का पायस  है यह पायस  लेटेक्स  कहलाता है यदि किसी वस्तु पर रबड़ की परत चढ़ाने होती है तो उसको वैद्युत कण संचलन विधि  से एनोड बना देते हैं | जिससे उस पर रबड़ के ऋण आत्मक कर पहुंचकर उदासीन हो जाते हैं और एक पर्त  के रूप में जम जाते हैं |

जल शोधन में 
नदी के जल में मिट्टी के ऋणआत्मक कण उपस्थित होते हैं इन्हें प्रथक करने के लिए जल में फिटकरी मिला देते हैं जिससे प्राप्त एलमुनियम आयन इन्हे स्कंदित  कर देते हैं इस प्रकार अशुद्धियां वर्कशिप के रूप में नीचे बैठ जाती हैं |

नदियों के डेल्टा बनाने में 
नदी के जल में मिट्टी, रेत के आवेशित कणों के रूप में निलंबित होती है अर्थात कोलाइडी अवस्था में होती है जब नदी का जल समुद्र के जल के संपर्क में आता है तो उसमें उपस्थित विद्युत अपघटन इनको स्कंदित  कर देता है और यह पदार्थ एकत्र होकर डेल्टा का निर्माण कर देते हैं |

रक्तस्राव रोकने में 
रक्त जल में अल्मुनियम पदार्थों का कोलाइडी विलयन है जिनमें ऋण आवेशित कण होते हैं रक्तस्राव होने पर ताजा फेरिक क्लोराइड विलयन डालने या   फिटकरी लगाने से इसका स्कंदन हो जाता है और रक्त स्राव रुक जाता है |

साबुन से कपड़े क्यों साफ हो जाते हैं  ?

कपड़ों पर लगी मेल ग्रीस  या तेली पदार्थ अर्थात चिकनाई पर जमी धूल के कण होते हैं क्योंकि यह कण ग्रीस  या तेल में अमिश्रणीय  होते हैं| अतः मैले कपड़े मात्र जल से धोने पर साफ नहीं होते हैं कपड़ों को जल में भिगोने पर जल तथा चिकनाई एक पायस बनाते हैं साबुन अपमार्जक लगाने से इनकी झाग एक पाइसीकारक के रूप में  इस पायस  को स्थाई  कर देती है जिससे कपड़े पर से धूल के कणों की पकड़ ढीली हो जाती है| ऐसी अवस्था में यांत्रिक कार्य जैसे रगड़ना आदि करने से धूल के कपड़े से प्रथक हो जाते हैं और कपड़ा साफ हो जाता है |



आकाश का रंग नीला क्यों दिखाई देता है ?

वायुमंडल में धूल के कण कोलाइड कण के रूप में फैले होते हैं जब सूर्य का प्रकाश इन धूल के कणों पर पड़ता है तो यह कण प्रकार के नीले रंग के अतिरिक्त सभी रंगों को अवशोषित कर लेते हैं और नीले रंग का प्रकीर्णन हो जाता है इस प्रकार आकाश का रंग नीला दिखाई पड़ने लगता है

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