Tuesday 26 May 2020

COLLOIDAL STATE कोलाइडी विलयन

 कोलाइड की परिभाषा दीजिए कोलाइडी अवस्था से आप क्या समझते हैं ?

 इस प्रकार के विलयन में पदार्थ के कणों का व्यास 10 ^(-4 )से 10^(-7) सेंटीमीटर के बीच होता है तथा विलायक के कणों का व्यास 10 ^(-4 )से 10^(-7)सेंटीमीटर के बीच  होता है आंखों से समांग दिखते हैं परंतु माइक्रोस्कोप से देखने पर विषमांगता प्रकट होती है तथा यह विलेय, विलायक के आकार के कारण होती है यह विलयन जन्तु झिल्ली जैसे कि चर्म पत्र द्वारा विसरित नहीं होते हैं विलयन की  इस अवस्था  को कोलाइडी अवस्था या कलील अवस्था या सौल कहते हैं जैसे गोंद, सरेश, स्टार्च आदि कोलाइडी विलयनबनाते हैं

कोलाइड और क्रिस्टलाभ  आप से क्या समझते हैं ?

कोलाइड वे पदार्थ जिनके विलयन चर्म  पत्र द्वारा विसरित        नहीं होते हैं अर्थात नहीं छनते हैं कोलाइड कहलाते हैं |
 क्रिस्टलाभ  वे पदार्थ जिनके विलयन तीव्र गति से चर्म पत्र द्वारा छन जाते हैं क्रिस्टलाभ कहलाते हैं

जैसे दूध, मक्खन, दही, बादल, धूम्र ,  आइसक्रीम, गोंद, सोडियम पामीटेट के रक्त, कोहरा कोलाइडी विलयन बनाते हैं

 यूरिया, शर्करा, सोडियम प्रोपियोनेट क्रिस्टलाभ विलयन बनाते है

कोलाइडी विलयन की परिक्षिप्त  अवस्था तथा परिक्षेपण माध्यम से क्या समझते हो

 कोलाइडी विलयन दो प्रावस्था का विषमांग  मिश्रण कहा जाता है जिस में विलेय तथा विलायक के कण मिले होते हैं कोलाइडी विलयन में विलेय सील पदार्थ के कणों की प्रावस्था को परिक्षिप्त प्रावस्था कहते हैं तथा उस विलायक माध्यम को जिसमें यह    कण      फैले होते              हैं    परिक्षेपण माध्यम कहते हैं |

वास्तविक, कोलाइडी,  निलंबन विलयन में अंतर स्पष्ट कीजिए

वास्तविक विलयन समांग मिश्रण जिसमें विलेय विलायक के कणों का आकार लगभग समान होता है  चर्म पत्र एवं जंतु झिल्ली दोनों से छन जाते हैं जाते हैं | आँख और सूक्ष्मदर्शी यंत्र से दिखाई नहीं देते हैं इनकी सतह  बड़ी नहीं होती है इनके अणुभर  कम होते हैं परासरण दाब अधिक होता है इनका रंग पदार्थ के आयन की प्रकृति पर निर्भर करता है इनका स्कंदन आसानी पूर्वक नहीं होता है यह आयनन होने पर कणों  पर आवेश आ जाता  है |



कोलाइडी विलयन विषमांगी मिश्रण जिसमें              विलेय कणों का      आकार                10 ^(-4 )से 10^(-7) सेंटीमीटर के बीच होता है तथा विलायक के कणों का आकार10 ^(-7 )से 10^(-8) सेंटीमीटर के बीच होता है यह  कागज     पत्र    से छन जाते हैं               लेकिन जंतु झिल्ली  से नहीं          छनते           हैं अति सूक्ष्म दर्शी यंत्र के द्वारा प्रकाश बिंदु के रूप में विलेय कण दिखाई देते हैं इनकी सतह बड़ी होती है यह टिंडल प्रभाव, ब्राउनी गति, वैद्युत कण संचलन प्रदर्शित करते हैं इनका स्कंदन हो जाता है |


 निलंबन
 विषमांगी मिश्रण जिसमें विलय के कणों का आकार 10 ^(-3 )से 10^(-4) सेंटीमीटर तथा विलायक के कणों का आकार 10 ^(-7 )से 10^(-8) सेंटीमीटर होता है यह छनना             पत्र तथा जंतु झिल्ली     दोनों से नहीं छनते                     हैं आंख और सूक्ष्म दर्शी दोनों से दिखाई देते हैं |

कोलाइडी विलयन के मुख्य गुण क्या है ?

कोलाइडी विलयन के मुख्य गुण
1- कोलाइडी विलयन टिंडल प्रभाव को प्रदर्शित करता है
2-  कोलाइडी विलियन वैद्युत कण संचलन को प्रदर्शित करता है कोलाइडी विलियन का स्कंदन हो जाता है

कोलाइडी विलियन  का वर्गीकरण कीजिए | अथवा द्रव स्नेही तथा द्रव  विरोधी  कोलाइड किसे कहते हैं समझाइए |


 कोलाइडी विलयन  को सुगमता के लिए निम्न दो वर्गों में विभाजित किया गया है
 1- द्रव स्नेही कोलाइड
2- द्रव विरोधी कोलाइड
द्रव स्नेही कोलाइड पदार्थ जो विलायक के संपर्क में आने पर तुरंत ही कोलाइडी कणों में विभाजित होकर कोलाइडी विलयन बना लेते हैं द्रव स्नेही कोलाइड कहलाते हैं | यह विलयन स्थाई होते हैं और विद्युत अपघट्य का विलयन मिलाने पर आसानी से  अवक्षेपित         नहीं होते हैं            अवक्षेपित करने                                                                              के पश्चात इन्हें फिर से कोलाइडी अवस्था में लाया जा सकता है इसलिए इनको उत्क्रमणीय कोलाइड                भी कहते हैं जब विलायक जल होता है तो यह जल स्नेही कोलाइड कहलाते हैं स्टाच ,प्रोटीन, जिलेटिन, इस प्रकार के कोलाइडी विलयन बनाते हैं

द्रव विरोधी कोलाइड    वे         पदार्थ जो विलायक के संपर्क में आने पर तुरंत ही कोलाइडी विलयन नहीं बनाते हैं द्रव विरोधी कोलाइड कहलाते हैं यह कोलाइडी विलयन अस्थाई होते हैं और किसी विद्युत अपघट्य का विलयन मिलाने पर आसानी से अवक्षेपित                                 हो जाते हैं अवक्षेपित होने के बाद इन्हें फिर से आसानी  पूर्वक कोलाइडी अवस्था में नहीं लाया जा सकता इसलिए इन्हें अन उत्क्रमणीय कोलाइड  विलयन कहते हैं जब विलायक जल होता है तो यह जल विरोधी कोलाइड कहलाते हैं  |
 धातु सल्फाइड, धातु हाइड्रोक्साइड आदि इस प्रकार के कोलाइडी विलयन बनाते हैं

कोलाइडी विलयन बनाने की विधियां :

 कोलाइडी विलयन बनाने की मुख्य विधियां निम्न

1- परिक्षेपण विधियां
 2- संघनन विधियां

प्रक्षेपण विधियां 

इन विधियों में पदार्थ के बड़े आकार वाले कणों को विभाजित कर कोलाइडी आकार के कणों में बदला जाता है इस प्रकार की मुख्य विधियां निम्नलिखित हैं

1-यांत्रिक परिक्षेपण 
इस विधि में पदार्थ को कोलाइडी चक्की में पीस कर कोलाइडी कणों में विभक्त कर लिया जाता है चक्की के दोनों पाट विपरीत दिशा में अत्यधिक वेग लगभग 700 चक्कर प्रति मिनट पर घूम रहे होते हैं इस विधि से पेंट वार्निश , टूथपेस्ट तथा छापेखाने की सिहाई आदि बनाए जाते है |

2-पेप्टीकरण विधि 
पेप्टीकरण विधि की क्रिया स्कंदन के विपरीत है इसमें ताजा बना हुआ अवक्षेप       को    एक                     तीसरे पदार्थ की सहायता से फिर से कोलाइडी अवस्था में परिवर्तित किया जाता है साधारणतया इस विधि में किसी ताजे  अवक्षेप       को किसी विद्युत अपघट्य के      तनु विलयन        के साथ हिलाने पर कोलाइडी विलयन प्राप्त होते हैं |
जैसे कि फेरिक हाइड्रॉक्साइड के ताजे  अवक्षेप में फेरिक क्लोराइड का तनु विलयन मिला देने से लाल रंग का फेरिक हाइड्रोक्साइड का कोलाइडी विलयन प्राप्त हो जाता है

3- वैद्युत परिक्षेपण या ब्रीडिंग आर्क  विधि
इस विधि में धातु के दो        बड़ी छड़ों                                 को बर्फ से ठंडा किए गए क्षार मिश्रित जल में डुबोते हैं और विद्युत धारा प्रवाहित करते हैं |  छड़ों के बीच आर्क  बनते ही धातु वाष्प  में परिवर्तित हो जाती है यह वाष्प  ठंडे जल में संगठित होकर कोलाइडी विलयन बना देती है सोना, चांदी, प्लैटिनम आदि धातुओं के कोलाइडी विलयन इसी   विधि      के        द्वारा      बनाए      जाते         हैं |                             
                                             

संघनन विधि

 इस विधि में छोटे आकार के कणों को संगठित करके कोलाइडी  आकार के कणों में बदला जाता है इसके अंतर्गत निम्न रासायनिक विधियां आती है

1- जल अपघटन विधि
 क्षीण धन  विद्युत धातु  जैसे आयरन, एलमुनियम, क्रोमियम, टिन  के ऑक्साइड  और हाइड्रोक्साइड के साल उनके लवणों के जल अपघटन द्वारा बनाए जाते हैं जैसे फेरिक क्लोराइड के जलीय विलयन को उबालने पर फेरिक हाइड्रोक्साइड का       भूरा            कोलाइडी विलयन प्राप्त होता है |

2-ऑक्सीकरण विधियां
इस विधि द्वारा सल्फर ,आयोडीन आदि आधातु  तत्वों पर कोलाइडी विलयन प्राप्त किए जाते हैं जैसे नाइट्रिक अम्ल और सल्फ्यूरिक अम्ल आदि में H2S गैस प्रवाहित किए जाने पर sulphar                    का कोलाइडी विलयन प्राप्त हो जाता है |


3-अपचयन अभिक्रिया
इस विधि में धातु लवण के विलयन में कोई अपचायक मिलाए जाने पर धातु का कोलाइडी विलयन बनता है विधि पर सोना ,चांदी ,प्लेटिनम आदि धातु के कोलाइडी विलयन बनाए जाते हैं
 जैसे गोल्ड क्लोराइड  विलयन  का स्टैनस क्लोराइड द्वारा अपचयन करके गोल्ड साल प्राप्त होता है

 4-उभय अपघटन विधि
इस विधि द्वारा धातु  सल्फाइड ओके कोलाइडी विलयन प्राप्त किए जाते हैं
जैसे आर्सेनियस ऑक्साइड के ठंडे जलीय विलयन में धीरे-धीरे हाइड्रोजन सल्फाइड गैस प्रवाहित करने पर पीले रंग का As2S3  साल प्राप्त होता है |


 5-विलायक विनिमय  विधि
इस विधि में पदार्थ का विलयन ऐसे विलायक में बनाया जाता है जिसमें वह बहुत अधिक विलय होता है और फिर विलयन को ऐसे विलायक में मिलाया जाता है जिसमें यह बहुत कम विलय होता है इससे उस पदार्थ का कोलाइडी विलयन बन जाता है

 अपोहन कौन से क्या समझते हैं इसका क्या महत्व है 

यह कोलाइडी विलयन के शोधन की एक विधि है प्रक्रम जिसमें एक कोलाइडी विलयन का शोधन चर्म पत्र झिल्ली में से प्रसरण किया जाता है अपोहन  कहते हैं | अपोहन  क्रिया इस तथ्य पर आधारित है कि घुलीत  पदार्थ के अणु और आयन चर्म पत्र झिल्ली से सरलता पूर्वक निकल जाते हैं जबकि कोलाइडी कण उसमें से नहीं निकल पाते हैं या कठिनाई से निकलते हैं इस प्रकरण में चर्म पत्र झिल्ली का एक थैला या बेलनाकार पात्र जिसे   अपोहक            कहते हैं लिया जाता है इस थैले के  पात्र में अशुद्ध कोलाइडी विलयन भर कर इसे एक बड़े जार या बी कर में लटका देते हैं और इसमें लगातार जल का प्रवाह करते रहते हैं इससे वैद्युत अपघटय  के कण चर्म  पत्र झिल्ली मैं  से निकलकर जल के साथ प्रवाहित हो जाते हैं और कोलाइडी विलयन पात्र में ही रह जाता है |



टिंडल प्रभाव 
देखा जाता है कि किसी अंधेरे कमरे में प्रकाश की किरण के मार्ग में कमरे की वायु में उपस्थित धूल के कण चमकने लगते हैं इसी संदर्भ में अब प्रकाश की किरण शुद्ध जल या नमक के विलयन में प्रवाहित की जाती है तो प्रकाश की किरण का मार्ग अद्रश्य रहता है लेकिन जब प्रकाश की किरण कोलाइडी विलयन में प्रवाहित करते हैं तो इसका मार्ग दिखाई देता है जिसमें धूल के कणों के स्थान पर कोलाइडी कणों त्वरित होते हुए दिखाई देते हैं अर्थात जब प्रकाश की किरणों को कोलाइडी विलयन से प्रवाहित करते हैं तो प्रकाश किरण का मार्ग द्रस्य                           हो जाता है इस प्रकार के प्रकाशीय प्रभाव को टिंडल प्रभाव कहा जाता है।



 ब्राउनी गति 
जब कोलाइडी विलयन का अवलोकन अति सूक्ष्मदर्शी  से किया जाता है तो कोलाइडी कण  आगे पीछे चलते दिखाई देते हैं यह कण             सदा तीव्र गति से टेढ़े मेढ़े अर्थात जिगजैग तरीके से सभी दिशाओं में चलते रहते हैं कोलाइडी कणों का तीव्र गति  के साथ इस प्रकार गति करना ब्राउनी गति कहलाता है यह गति कोलाइडी कणों के परिक्षेपण माध्यम के साथ टकराने से उत्पन्न होती है सर्वप्रथम इस गति का निरीक्षण र्राबर्ट    ब्राउन ने             किया था इसीलिए इसको ब्राउनी गति कहते हैं

वैद्युत कण संचलन
 कोलाइडी कणों पर धनात्मक अथवा ऋण आत्मक वैद्युत आवेश होता है जब किसी कोलाइडी विलयन को वैद्युत क्षेत्र में रखा जाता है तो धन आवेशित या ऋण आवेशित कण विपरीत आवेश वाले इलेक्ट्रोड की ओर चलने लगते हैं और उन पर पहुंचकर उदासीन हो जाते हैं कोलाइडी कणों का वैद्युत क्षेत्र में विपरीत इलेक्ट्रॉनों की ओर अभिगमन करना वैद्युत कण संचलन कहलाता है कोलाइडी कणों के कैथोड की ओर अभिगमन को धन कण  संचरण और एनोड की ओर अभिगमन को   ऋण    कण       संचरण         कहा जाता है  |



 स्कंदन 
कोलाइडी कणों पर समान वैद्युत आवेश होने के कारण वे एक-दूसरे से दूर रहते हैं अतः किसी कोलाइडी विलयन को स्थाई बनाने के लिए इसमें उचित विद्युत अपघट्य की अल्प मात्रा मिलाई जाती है लेकिन इसकी अधिक मात्रा को मिलाने पर उसे प्राप्त विपरीत आवेश वाले आयन कोलाइडी कणों को उदासीन कर देते हैं यह उदासीनीकरण ब्राउनी गति के कारण एक-दूसरे से टकराकर संयुक्त होकर बड़े-बड़े कण बना लेते हैं जो अवक्षेप  के रूप में नीचे बैठ जाते हैं यह घटना स्कंदन कहलाती है |
जैसे आरसेनिय सल्फाइड के कोलाइडी विलयन में बेरियम क्लोराइड का आधिक्य  मिलाए जाने पर                          साल स्कंदित  हो जाता है यह बेरियम    आयन      का धन आवेश      As2S3  के ऋण    आवेश                           को        उदासीन    कर                        देता है और यह उदासीन हो जाने से संयुक्त होकर नीचे बैठ जाते हैं
 भिन्न-भिन्न विद्युत अपघट्य की स्कंदन गति हार्डी शुलझे के अनुसार होती है

 पेप्टिकरण
 कोलाइडी विलयन के अवक्षेपण को सकंदन कहते हैं |    पेप्टीकरण   स्कंदन की विपरीत क्रिया है इस प्रक्रम द्वारा किसी  ताजे अवश्य को पुनः कोलाइडी अवस्था में बदला जाता है दूसरे शब्दों में पेप्टीकरण किसी स्कंदित  साल का पुनः परिक्षेपण है जैसे फेरिक हाइड्रोक्साइड के ताजे अवक्षेपमें कुछ मात्रा फेरिक क्लोराइड विलयन की मिलाने पर वह पुनः कोलाइडी विलयन बना लेता है


हार्डी शुलझे नियम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए 

विद्युत अपघट्य के मिलाने पर किसी कोलाइडी विलयन के स्कंदन के संबंध में हार्डी शुलझे ने निम्न दो नियम दिए जिन्हें हार्डी शुलझे के नियम के नाम से जाना जाता है
कोलाइडी विलयन के स्कंदन के लिए मिलाए गए विद्युत अपघट्य आयन सक्रिय होते हैं जिनका आवेश कोलाइडी कणों के आदेश के विपरीत होता है
विद्युत अपघटय की स्कंदन  स्कंदित  करने वाले आयन की संयोजकता  पर निर्भर करती है समान  संयोजकता वाले आयनों की स्कंदन सकती समान होती है स्कंदन आयन की संयोजकता बढ़ने पर उसकी शक्ति भी बढ़ जाती है अर्थात इस नियम के अनुसार किसी विद्युत अपघट्य आयनों की स्कंदन  शक्ति  आयन की संयोजकता बढ़ने के साथ बढ़ती है |


कोलाइड के रक्षण से आप क्या समझते हैं

जब किसी द्रव विरोधी कोलाइड में कुछ मात्रा द्रव स्नेही कोलाइड विलयन  की मिला दी जाती है तो   द्रव विरोधी कोलाइड का                                         स्कंदन रुक जाता है अर्थात उसका स्थायित्व बढ़ जाता है यह प्रक्रम रक्षण कहलाता है | वे  द्रव  स्नेही कोलाइड जिनहे  मिलाए जाने पर द्रव विरोधी कोलाइड विलयन का स्थायित्व बढ़ जाता है रक्षक अथवा रक्षी कोलाइड कहलाते हैं |
                      इस प्रकार प्राप्त द्रव विरोधी कोलाइड रक्षित कोलाइड कहलाता है जैसे सोने के द्रव विरोधी कोलाइड विलयन में सोडियम क्लोराइड विलयन मिला देने पर यह स्कंदित हो जाता है लेकिन इस कोलाइडी विलयन में कुछ मात्रा जिलेटिन की मिलाने पर सोडियम क्लोराइड का प्रभाव नष्ट हो जाता है यहां जिलेटिन रक्षी कोलाइड के रूप में कार्य करता है |

स्वर्ण संख्या की परिभाषा दीजिए  | या स्वर्ण संख्या पर संक्षिप्त टिप्पणी  लिखिए |

विभिन्न द्रव  स्नेही कोलाइड  की रक्षण शक्ति अलग अलग होती है द्रव स्नेही कोलाइड ओं की रक्षण शक्ति को व्यक्त करने के लिए वैज्ञानिक जिग्मोंडी  ने एक विशिष्ट संख्या निर्धारित की जिसे स्वर्ण संख्या कहते हैं इसकी परिभाषा निम्न प्रकार दी जा सकती है
         किसी द्रव स्नेही अथवा रक्षी कोलाइड की स्वर्ण संख्या उस कोलाइड की शुष्क अवस्था में मिलीग्राम में वह कम से कम मात्रा है जो 10 मिली सोने के कोलाइडी विलयन में मिलाने पर इस कोलाइड  के सोडियम क्लोराइड के 10% विलयन के एक मिली द्वारा स्कंदन से रोकती है |
नोट :  स्कंदित होने पर सॉल लाल रंग से नीले रंग में परिवर्तित हो जाता है |

कोलाइडी रसायन के अनुप्रयोग

औषधियों में 
बहुत सी औषधियां कोलाइडी अवस्था में अधिक प्रभावी होती हैं क्योंकि इस अवस्था में इनका अधिशोषण तथा पाचन सरलता पूर्वक हो जाता है जैसे आरजिरोल तथा प्रोटारगल  चांदी से रक्षित कोलाइडी विलयन है |

धुए अवक्षेपण में 
धूवां  कार्बन व अन्य कणों का वायु में एक कोलाइडी तंत्र होता है इन कणों को प्रथक करने के लिए धूवां  एक स्तंभ में से प्रवाहित किया जाता है जिसमें धनात्मक आवेश वाला धातु का गोला लटकता रहता है यहां कार्बन के ऋण आत्मक कण उदासीन  होकर अवक्षेपित जाते हैं और चिमनी से गर्म वायु ही बाहर निकलती है |

मलसे  गंदगी पृथक करने में 
मल में गंदगी के कारण ऋण आत्मक कोलाइड के रूप में उपस्थित होते हैं यह एनोड पर अवक्षेपित हो जाते हैं |

रबड़ उद्योग में 
रबड़ जल में उपस्थित ऋण आत्मक कणों का पायस  है यह पायस  लेटेक्स  कहलाता है यदि किसी वस्तु पर रबड़ की परत चढ़ाने होती है तो उसको वैद्युत कण संचलन विधि  से एनोड बना देते हैं | जिससे उस पर रबड़ के ऋण आत्मक कर पहुंचकर उदासीन हो जाते हैं और एक पर्त  के रूप में जम जाते हैं |

जल शोधन में 
नदी के जल में मिट्टी के ऋणआत्मक कण उपस्थित होते हैं इन्हें प्रथक करने के लिए जल में फिटकरी मिला देते हैं जिससे प्राप्त एलमुनियम आयन इन्हे स्कंदित  कर देते हैं इस प्रकार अशुद्धियां वर्कशिप के रूप में नीचे बैठ जाती हैं |

नदियों के डेल्टा बनाने में 
नदी के जल में मिट्टी, रेत के आवेशित कणों के रूप में निलंबित होती है अर्थात कोलाइडी अवस्था में होती है जब नदी का जल समुद्र के जल के संपर्क में आता है तो उसमें उपस्थित विद्युत अपघटन इनको स्कंदित  कर देता है और यह पदार्थ एकत्र होकर डेल्टा का निर्माण कर देते हैं |

रक्तस्राव रोकने में 
रक्त जल में अल्मुनियम पदार्थों का कोलाइडी विलयन है जिनमें ऋण आवेशित कण होते हैं रक्तस्राव होने पर ताजा फेरिक क्लोराइड विलयन डालने या   फिटकरी लगाने से इसका स्कंदन हो जाता है और रक्त स्राव रुक जाता है |

साबुन से कपड़े क्यों साफ हो जाते हैं  ?

कपड़ों पर लगी मेल ग्रीस  या तेली पदार्थ अर्थात चिकनाई पर जमी धूल के कण होते हैं क्योंकि यह कण ग्रीस  या तेल में अमिश्रणीय  होते हैं| अतः मैले कपड़े मात्र जल से धोने पर साफ नहीं होते हैं कपड़ों को जल में भिगोने पर जल तथा चिकनाई एक पायस बनाते हैं साबुन अपमार्जक लगाने से इनकी झाग एक पाइसीकारक के रूप में  इस पायस  को स्थाई  कर देती है जिससे कपड़े पर से धूल के कणों की पकड़ ढीली हो जाती है| ऐसी अवस्था में यांत्रिक कार्य जैसे रगड़ना आदि करने से धूल के कपड़े से प्रथक हो जाते हैं और कपड़ा साफ हो जाता है |



आकाश का रंग नीला क्यों दिखाई देता है ?

वायुमंडल में धूल के कण कोलाइड कण के रूप में फैले होते हैं जब सूर्य का प्रकाश इन धूल के कणों पर पड़ता है तो यह कण प्रकार के नीले रंग के अतिरिक्त सभी रंगों को अवशोषित कर लेते हैं और नीले रंग का प्रकीर्णन हो जाता है इस प्रकार आकाश का रंग नीला दिखाई पड़ने लगता है

Saturday 23 May 2020

Metallurgy

























खनिज और अयस्क को परिभाषित कीजिए |

 खनिज प्रकृति में पृथ्वी के अंदर धातुएँ  तथा उनके यौगिक जिस रूप में पाए जाते हैं उनको खनिज कहते हैं जैसे कि कॉपर पायराइट एक खनिज है जिसमें मुख्य रुप से कॉपर और आयरन  धातु उपस्थित होती हैं |

   अयस्क  जिस खनिज से किसी धातु को प्रचुर मात्रा में कम व्यय पर  आसानी से प्राप्त किया जा सके उसको उस विशिष्ट धातु का अयस्क कहते हैं |
कॉपर का मुख्य अयस्क कॉपर पायराइट एलमुनियम का मुख्य अयस्क बॉक्साइट है लैड को  गैलेना से प्राप्त करते हैं

 खनिज एवं अयस्क में अंतर : सभी अयस्क  खनिज होते हैं किंतु सभी खनिज अयस्क नहीं होते हैं 

आधात्रि अथवा मैट्रिक्स किसे कहते हैं  ?
अयस्क में प्रायः  पत्थर के टुकड़े, मिट्टी के कण, कंकड़, बालू, चूने का  पत्थर तथा अन्य पदार्थ अपद्रव्य के रूप में उपस्थित होते हैं इन अपद्रव्यों को जो अशुद्धियों के रूप में अयस्क में उपस्थित होती हैं आधात्रि अथवा मैट्रिक्स कहते हैं

किन्हीं दो सल्फाइड बॉक्साइट अयस्क ओं के नाम लिखिए |
 सल्फाइड अयस्क कॉपर पायराइट(CuFeS2)   सिल्वर ग्लांस या अर्जेंटटाइट(AgS)
 ऑक्साइड   Cuprite(Cu2O)    बॉक्साइट(Al2O3.2H2O)

अयस्क का सांद्रण करना क्यों आवश्यक है ?सांद्रण में प्रयुक्त होने वाली विधियों के नाम बताइए |
अयस्क में प्रायः  रेत, मिट्टी, पत्थर आदि की अशुद्धियां होती हैं जिन्हें अधात्रि या मैट्रिक्स कहते हैं अयस्क से  इन   अशुद्धियों को पृथक करना अयस्क का सांद्रण कहलाता है
 इसके के सांद्रण की मुख्य विधियां निम्नलिखित हैं :
 1- गुरुत्व पृथक्करण विधि
 2- फेन उत्प्लावन विधि
 3- विद्युत चुंबकीय पृथक्करण विधि

फेन उत्प्लावन विधि
फेन उत्प्लावन विधि से सामान्यतः सल्फाइड़ अयस्क का सांद्रण किया जाता है यह विधि अयस्क  तथा गैंग की किसी द्रव से भीगने की प्रकृति पर निर्भर करती है तेल और जल के मिश्रण में सल्फाइड अयस्क को डालने पर सल्फाइड अयस्क  के मुख्य रूप से तेल द्वारा और अयस्क   में उपस्थित गैंग  जल द्वारा  भीगता  है 
           इस विधि   में अयस्क को कूटकर पीसकर छानकर एक टैंक में चीड़ का तेल या यूकेलिप्टिस  तेल व पानी के साथ मिश्रित कर  वायु की प्रबल धारा प्रवाहित करते हैं |  सल्फाइड अयस्क के  कण तेल से भीग कर द्रव की सतह पर फैन या झाग के रूप में एकत्रित हो जाते हैं और पृथक कर लिए जाते हैं गैंग जल से भीग कर टैंक के पेंदे में बैठ जाता है इस प्रक्रम में तेल द्रव का पृष्ठ तनाव कम कर के स्थाई झाग बनाता है जिससे अयस्क के     कण अधिषोसित हो जाते हैं |


 निस्तापन एवं वर्जन से क्या समझते हैं ?
 निस्तापन सांद्रित अयस्क  को उसके गलनांक के नीचे वायु की उपस्थिति या कम मात्रा में (बिना पिघलाये)  गर्म करके उसमें से नमी हाइड्रेशन जल तथा अन्य वाष्पशील पदार्थों को बाहर निकालने की क्रिया को निस्तापन कहते हैं 
धातु कार्बोनेटों तथा हाइड्रोक्साइडओं को गर्म करके कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल निष्कासित कर के धातु ऑक्साइडओं को प्राप्त करना भी निस्तापन कहलाता है निस्तापन प्रक्रम के फल स्वरुप अयस्क शुष्क तथा छिद्रयुक्त हो जाता है 
जैसे बॉक्साइट अयस्क का निस्तापन करने पर उसमें उपस्थित हाइड्रेशन जल वाष्पित होकर बाहर निकल जाता है
Al2O3.2H2O  → Al2O3 + 2H2O

 भर्जन  सांद्रित अयस्क  को अकेले या किसी अन्य पदार्थ के साथ मिलाकर उसके गलनांक से नीचे के ताप पर (बिना पिघलाए) वायु की नियंत्रित मात्रा में गर्म करने की क्रिया को भर्जन कहते हैं   
  भर्जन   क्रिया के द्वारा अयस्क  के आंशिक या पूर्ण रूप से आक्सीकृत हो जाता है तथा अयस्क में उपस्थित सल्फर और एंटीमनी अशुद्धियां  आक्सीकृत होकर वाष्पशील आक्साइडो के रूप में प्रथक हो जाती हैं
 जैसे  आयरन अयस्क का भर्जन निम्न प्रकार होता है :
4FeO + O2 → 2Fe2O3

 भर्जन  की क्रिया परावर्तनी भट्टी में कराई जाती है

निस्तापन एवं वर्जन में अंतर स्पष्ट कीजिए |
निस्तापन में अयस्क को निम्न ताप पर वायु  की अनुपस्थिति या कम मात्रा में गर्म किया जाता है जबकि 
भर्जन मैं    अयस्क को उच्च ताप पर बिना पिघलाए वायु की  नियंत्रित  मात्रा मैं  गर्म किया जाता है

     गालक क्या है समझाइए  | 
गालक उस पदार्थ को कहते हैं जो अयस्क में उपस्थित अगलनीय अशुद्धियों के साथ उच्च ताप पर क्रिया करके इनको आसानी से गला करके पृथक होने वाले पदार्थों के रूप में दूर कर देते हैं अशुद्धियों से गालक  की क्रिया  के फल स्वरुप बने गलनीय पदार्थ को धातुमल कहते हैं 
धातु की अपेक्षा धातुमल हल्का होने के कारण पिघली  हुई धातु की सतह के ऊपर तैरने लगता है इस धातु मल को आसानी पूर्वक चमचों की सहायता से अलग कर लिया जाता है 

गालक के प्रकार

 गालक दो प्रकार के होते हैं

क्षारीय गालक : वे गालक जो  अम्लीय  अशुद्धियों से क्रिया करके धातुमल  बनाते हैं क्षारीय  गालक कहलाते हैं जैसे मैग्नीशियम कार्बोनेट, कैलशियम कार्बोनेट  आदि मुख्य  क्षारीय गालक    हैं
अम्लीय गालक वह  गालक जो क्षारीय अशुद्धियों से क्रिया करके धातु मल बनाते हैं अम्लीय गालक कहलाते हैं सिलिका तथा बोरेक्स से मुख्य अम्लीय गालक हैं

प्रगलन किसे कहते हैं उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए |

निस्तापन तथा भर्जन क्रिया द्वारा प्राप्त अयस्क  को कोक तथा उचित गालक को साथ मिलाकर उच्च ताप पर गर्म करने पिघलाने की क्रिया को प्रगलन कहते हैं इस क्रिया में  अयस्क  का  गलित धातु मैं अपचयन हो जाता है अथवा धातु युक्त  पदार्थ पिघल जाता है तथा गालक में उपस्थित अधात्री से क्रिया करके गलित धातु मल बना लेता है  गलित धातुमल    गलित  धातु     के ऊपर एक अलग  परत   के रूप में एकत्रित हो जाता है 
कॉपर पायराइट के निष्कर्षण में    भर्जित अयस्क मैं quartz  और कोक  मिलाकर मिश्रण को वात्या भट्टी  में प्रगलित कराते हैं |

धातुओं के शोधन की मुख्य विधियां कौन-कौन सी है  ?

धातुओं का शोधन करने के लिए अनेक विधियां प्रयुक्त की जाती हैं जो धातु की प्रकृति तथा उसमें उपस्थित अशुद्धियों पर निर्भर करती है
 इनका विवरण निम्न प्रकार है
विद्युत अपघटन  विधि यह विधि धातुओं के शोधन की मुख्य विधि है  इस विधि में अशुद्धि धातु को एनोड तथा शुद्ध धातु को cathod  बनाते हैं और धातु के लवण का विलयन विद्युत अपघट्य का कार्य करता है विद्युत अपघटन  करने  पर anode घुलने लगता है और अशुद्धियां विलयन में चली जाती हैं अथवा एनोड मड   के रूप में एनोड के नीचे एकत्रित हो जाती हैं जबकि शुद्ध धातु  cathode  पर जमा हो जाता है इस विधि का उपयोग चांदी, सोना आदि के शोधन में किया जाता है

द्रवण विधि इस विधि में कम गलनांक की धातुओं जैसे tin को पिघलाकर ढालू तल पर बहने दिया जाता है जिससे अशुद्धियां पीछे रह जाती हैं और धातु    बहकर अलग हो जाती है

आसवन  विधि वाष्पशील धातुओं जैसे मरकरी ज़िंक को आसवन  द्वारा शोधित  किया जाता है

खर्पण विधि : इसमें अशुद्ध   धातु      को वायु की उपस्थिति में गर्म किया जाता है जिससे धातु में उपस्थित अशुद्धियां आक्सीकृत होकर        वाष्प के      रूप में पृथक हो जाती हैं और शुद्ध धातु बची रहती है खर्पण विधि सिल्वर में उपस्थित लेड को पृथक करने के लिए प्रयुक्त की जाती है |

परावर्तनी भट्टी

परावर्तनी भट्टी अग्निरोधक ईंटों    की दीवारों की बनी होती है इसमें मुख्य रूप से 3 भाग होते हैं :
अग्नि स्थान :यह वह स्थान है जहां      ईधन        जलाकर ऊष्मा     प्रदान की जाती है 

चूल्हा  या भट्टी का तल यह भट्टी का वह स्थान है जहां पर  घान या महीन पिसा  हुआ अयस्क  रखा जाता है


चिमनी इस भाग से बनी हुई व्यर्थ   गैसे बाहर निकल जाती हैं 


कार्य विधि गर्म किए जाने वाले अयस्क के    बारीक          महीन चूर्ण को भट्टी के तल यानी चूल्हा पर रखकर भट्टी को जला देते हैं गर्म कैसे उत्पन्न होती हैं और चूल्हे पर रखे हुए घान  को गर्म कर देती हैं घान को  तब तक गर्म करते हैं जिस पर उसकी नmi निकल जाए अथवा वायु की उपस्थिति में धान का  आक्सीकरण हो जाए परंतु पिघलने ना पाए इस भट्टी में आग  की लपटें छत  से टकराकर चूल्हे पर रखे धान पड़ जाती हैं और उसे गर्म कर देती हैं इसी कारण इसे परावर्तनी भट्टी कहते हैं इस भट्टी का प्रयोग तांबा , लेड धातुओं के धातु कर्म में किया जाता है

परार्तनी भट्टी 
की विशेषताएं 
इस भट्टी मैं ईंधन और घान का सीधा संपर्क नहीं होता है इसका ऑक्सीकरण और अपचयन दोनों प्रकार की क्रियाओं में प्रयोग किया जाता है इस भट्टी का उपयोग निस्तापन भंजन प्रगलन तीनों के लिए किया जा सकता है



 वात्या भट्टी 

वात्या भट्टी यह भट्टी चिमनी के आकार की होती है लगभग 25 से 26 मीटर ऊंचाई तथा छह से आठ मीटर ब्यास वाली होती है इस भट्टी का बाहरी भाग इस्पात का  hoता है
 बना होता है तथा अंदर की दीवारों में अग्नि रोधक ईटों का स्तर लगा होता है 
इस भट्टी के मुख्य तीन भाग हैं


 हापर  वात्या भट्टी के सबसे ऊपर वाले भाग को हापर कहते हैं इसमें घान  को अंदर फेंकने के लिए कीप तथा कोन  की व्यवस्था होती है कि कौन व्यवस्था के नीचे एक तरफ बेकार गैसों के निकलने के लिए द्वार बना होता है


बॉडी तथा बाश  यह भाग दो कोणों से निर्मित होता है ऊपर वाले लंबे कौन को बाड़ी   तथा नीचे वाले                  छोटे            कौन को वाश  कहते हैं बॉडी के ऊपरी भाग में गर्म गैसों के निकलने के लिए एक द्वार होता है जबकि के     निचले भाग में वाश मैं त्वीयर लगे होते हैं जिनके द्वारा गर्म हवा भट्टी के अंदर भेजी जाती है 

चूल्हा 
वात्या भट्टी के सबसे नीचे वाले भाग में चूल्हा  लगा होता है जिसमें  पिघली धातु द्रव के  रूप में  रहती है गलित धातु  के ऊपर      धातुमल           तैरता रहता है भारी धातु को निकालने के लिए नीचे एक छेद होता है और इससे ठीक ऊपर वाले भाग में हल्के धातुमल  को      निकालने के लिए भी एक   द्वार       होता है


 कार्य विधि इस भट्टी में सांद्रित             अयस्क का    अचयन किया जाता   इसके लिए   सां
द्रित आयस्क    मैं कोक                 तथा उचित मात्रा में   गालक      मिलाकर मिश्रण को हापर   के    द्वारा भट्टी में डाला जाता है यह मिश्रण भट्टी में ऊपर से नीचे की ओर जाने पर भिन्न-भिन्न बढ़ते तापों  के संपर्क में आता जाता है और भट्टी में कई प्रकार की क्रियाए  होती रहती हैं इस में           मुख्य है अयस्क   मे उपस्थित    आधात्री का गालक    से             क्रिया करके    धातुमल       बना लेना तथा धातु अयस्क का 
कोक द्वारा   अपचयित     होकर धातु को मुक्त करना
अयस्क  से मुक्त हुई धातु पिघल कर चूल्हे  में एकत्रित हो जाती है 
वात्या भट्टी का उपयोग Fe, Cu, Pb  धातु के निष्कर्षण में करते हैं



 मफल भट्टी



मफल भट्टी सोना चांदी तथा जिंक धातु के निष्कर्षण में प्रयोग की जाती है इन धातुओं को गर्म करने पर           इनको     इंधन तथा उसके दहन से उत्पन्न गैसों के संपर्क में लाना ठीक नहीं होता है इस अवस्था में मफल भट्टी का प्रयोग किया जाता है |
इस भट्टी में दोनों तरफ से रेटोर्ट  बने होते हैं काफी ऊंचा ताप सकते हैं इन रिटार्ड को  मफल कहते हैं यह जलते हुए गर्म इंधन या उससे निकली हुई गर्म गैसों से घिरे होते हैं मफल को इंधन से उत्पन्न गर्म  गैसों  द्वारा चारों तरफ से बंद अवस्था में गर्म करते हैं धातु पिघल जाती है जिसे भट्टी में बने निकास के द्वारा बाहर निकाल लिया जाता है





Dr. V. K. Omar





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