Eng Prem Gupta: ONLINE CLASS
AIC INSTITUTE KANPUR
By PREM KUMAR GUPTA
CLASS --. 11th
LONG POEM
LIGHT OF ASIA
By----. Sir. Edwin Arnold
कविता. का हिन्दी सारांश
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इस Narrative poem में कवि नें गौतम बुद्ध के जन्म उनके रहन सहन , शिक्षा , से लेकर गृह त्याग , तथा राजकुमार सिद्धार्थ से लेकर बुद्ध बनने एवं निर्वाण प्राप्त करने तक का वर्णन किया है ।
यह BOOK. III है जो कि CLASS 11th के पाठ्यक्रम मे है ।
कहानी
राजा सुद्दोधन कपिल वस्तु के राजा थे । उनकी पत्नी रानी महामाया थीं । उनके कोई संतान नही थी। यह उनके दुख का सबसे बडा कारण था।
अन्तत: ईश्वर ने उन्हे यह खुशी प्रदान की रानी महामाया गर्भवती हो गयीं । और संतान को जन्म देने के लिए रिवाज के अनुसार उन्हे अपने मायके जाना था।
रास्ते में लुम्बिनी नामक एक सुन्दर बाग था जिसमे अशोक के पेड़ बहुत ही सुन्दर मनमोहक पुष्पों से आच्छादित थे ।रानी महामाया वहाँ रुककर आराम करने लगीं । तत्पश्चात उनकी ईच्छा अशोक के फूलों को प्राप्त करने की हुई। वह पेड के पास गयीं । जैसे ही उन्होने डाली को पकडा उसी समय राजकुमार सिद्धार्थ का जन्म हुआ। राज्य में खुशी का माहौल था । किन्तु राजकुमार सिद्धार्थ के जन्म के सातवें दिन के बाद रानी महामाया का स्वर्गवास हो गया।
राजकुमार सिद्धार्थ को उनकी सेविका चित्रा ने पाला पोषा ।
राजकुमार सिद्धार्थ का जीवन
उस शान्त भवन में राजकुमार सिद्धार्थ सुख तथा प्रेम से रहते थे। उन्हें दु:ख , अभाव , कष्ट ,रोग , वृद्धावस्था या मृत्यु का ग्यान नहीं था। लेकिन सभी प्रकार की सुख -- सुविधाओं के बावजूद इन बातों का एक धुंधला सा ध्यान उनके मस्तिष्त में इस प्रकार आता था जैसे जब स्वप्न में सोने वालों को ऐसा मालूम होता है कि अँधेरे समुद्र पर यात्रा करने के पश्चात वे थक जाते हैं ।तथा वहाँ से कुछ विचित्र सामान लाते हैं ।
इस प्रकार प्राय: जब राजकुमार सिद्धार्थ अपनी पत्नी यशोधरा के सीने पर सिर रखकर शान्ति पूर्वक लेटे रहते थे। और यशोधरा के प्रेम भरे हाथ उन्हे सोता देखकर उनकी पलकों पर पंखा झलते रहते थे ।तभी वह कभी- कभी चौंक पडते थे तथा चीख पडते थे, " मेरे संसार , मै सुनता हूँ, मैं आता हूँ ।" तब यशोधरा भयभीत होकर पूछती थी, "मेरे स्वामी को क्या कष्ट है ?" ऐसेे अवसरों पर उनके चेहरे पर करुणा का भाव होता था। और उनका मुख किसी देवता के मुख जैसा दिखाई देता था। तब यशोधरा के आँसुओं को रोकने के लिए वह मुस्कुरा देते थे।
तथा आदेश करते थे कि वीणा बजाई जाए । एक बार वीणा चौखट पर रख दी गयी। वायु कुछ समय वहाँ उसके पास ठहर कर बहती तथा अपनी ईच्छानुसार ध्वनि उत्पन्न करती । जब वायु ने वीणा के तारों को छुआ तो एक संगीत उत्पन्न हुआ । वीणा के चारो ओर जो व्यक्ति थे उन्होने केवल वह ध्वनि सुनी लेकिन राजकुमार सिद्धार्थ ने सुना कि देवता वीणा बजा रहे हैं । उनके कानों में देवताओं के ये गीत सुनाई पडे ----- 👇👇👇
" हम भ्रमण करती हुई वायु की आवाज हैं जो आराम के लिए कराहती हैं लेकिन हमें आराम प्राप्त नही होता है। देखो , मनुष्य का नाशवान जीवन वायु के समान है । यह दु:ख से भरी एक आवाज है , एक कराह है , एक तुफान है, एक संघर्ष है ।
तुम नहीं जान सकते कि हम क्यों और कहाँ से आए हैं और न तुम यह जान सकते हो कि जीवन का आरम्भ कहाँ से होता है और अन्त कहाँ होता है । हम तुम्हारे समान हैं , हम शून्य अर्थात अन्तरिक्ष से आई प्रेतात्माएं हैं हमें अपने परिवर्तनशील दु:ख से क्या आनन्द प्राप्त होता है।
( 1 )
The LIGHT OF ASIA [ LONG POEM ]
By SIR EDWIN ARNOLD
कहानी
तुमको अपने अपरिवर्तनशील सुख से क्या आनन्द प्राप्त होता है ? नहीं , यदि प्रेम स्थायी होता तो उससे आनन्द प्राप्त हो सकता था । परन्तु जीवन वायु के समान है। ये सभी वस्तुएँ थोडे समय के लिए आवाजें हैं जो हिलते हुए वीणा के तारों पर गाई जाती हैं ।
हे माया के पुत्र ! हम वीणा के तारों पर इसीलिए कराहते हैं क्योंकि हम संसार में भ्रमण करते हैं। हमे कोई आनन्द प्राप्त नही होता। हम अनेक देशों में अनेक प्रकार के दु:ख देखते हैं । हम अनेक व्यक्तियों को आँसू बहाते तथा दु:ख से हाथ मलते देखते हैं।
फिर भी हम रोते हुए भी उन पर हँसते हैं जो इस जीवन से चिपके हुए हैं क्योंकि वे नहीं जानते कि यह जीवन खाली दिखावा है अर्थात सार--- रहित है। यह उसी तरह है जैसे बादलों को ठहरने का आदेश देना अथवा बहती हुई नदी को हाथ से रोकने की कोशिश करना।
तुम्हें मनुष्यों की रक्षा करनी है । तुम्हारा कर्तव्य का समय निकट है। यह दु:खी संसार अपने कष्ट में तुम्हारे द्वारा रक्षा की प्रतीक्षा कर रहा है। यह अन्धा संसार अपने कष्ट की बारी आने पर ठोकर खाकर गिरता है। अत: हे माया के पुत्र ! उठो , जागो , पुन: मत सोओ।
हम चलती हुई हवाओं के स्वर हैं अर्थात वायु जो प्रत्येक स्थान पर चलती है हमारे माध्यम से बोल रही है । ओ राजकुमार , तुम्हें भी शान्ति पाने के लिए भ्रमण करना चाहिए। प्रेम करने वालों को प्रेम के लिए छोड दो। इस राज्य को छोड दो और संसार के दु:खों को दूर कर मुक्ति की खोज करो।"
"हम वीणा के तारों द्वारा यही आहें भरते हैं क्योंकि तुम सांसारिक वस्तुओं के बारे में कुछ भी नहीं जानते हो । जाते- जाते हम इन सुन्दर परछाइयों ( मिथ्या वस्तुओं ) का मजाक उडा रहे हैं जिनके साथ तुम खेल रहे हो।"
इसके पश्चात सायंकाल के समय राजकुमार सिद्धार्थ अपने सुन्दर दरबार में बैठे थे और सुन्दर यशोधरा का हाथ उनके हाथों में था। तभी एक दासी ने, संगीत के मध्य में जब उसकी मधुर आवाज धीमी पड गई , संध्या के समय को शीघ्र व्यतीत करने के लिए प्राचीन काल की एक कथा सुनाई। यह कथा प्रेम की , एक जादू के घोडे की तथा अद्भुत दूर के देशों की थी जहाँ पीले लोग रहते थे। और जहाँ सूर्य रात को समुद्र मे डूब जाता था।
तब सिद्धार्थ ने आह भरते हुए कहा, " चित्रा मुझे वायु द्वारा वीणा के तारों पर गाये गीत की याद दिलाती है।" उन्होने यशोधरा से कहा कि इसे धन्यवाद के रूप में अपना मोती दे दो । लेकिन मेरा मोती तो तुम हो। उन्होने यशोधरा से पूछा -- क्या संसार इतना विस्तृत है ? क्या कोई ऐसा देश है जहाँ व्यक्ति सूर्य को समुद्र मे डूबता हुआ देख सकते हैं ? क्या हमारे समान अनेक लोग हैं जिनको कोई नहीं जानता तथा दु:खी हैं ? यदि हम उनको जानते तो उनकी सहायता अवश्य कर सकते थे।
जब सूर्य पूर्व से पश्चिम को अपने स्वर्णिम मार्ग पर चलता है तो बहुधा मैं आश्चर्य में पड जाता हूँ। संसार के किनारे पर उसकी किरणों का प्रथम बार स्वागत कौन करता है ? प्रातः काल के बच्चे कौन हैं ? तुम्हारी भुजाओं में तथा वक्षस्थल पर पडे कभी-कभी मैं पीडा का अनुभव करता हूँ। जब मै सूर्य को अस्त होते देखता हूँ तो मै भी उसके गहरे लाल पश्चिम में जाना चाहता हूँ। और सायंकाल के लोगों को देखना चाहता हूँ। वहाँ ऐसेे अनेक व्यक्ति होगें जिन्हें हम प्यार कर सकेंगे। अब मै बडा कष्ट अनुभव कर रहा हूँ जिसे तुम्हारे मधुर होंठ दूर नहीं कर सकते।
( 2 )
LIGHT OF ASIA
By -- Sir Edwin Arnold
कहानी
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राजकुमार सिद्धार्थ ने आगे चित्रा से पूछा , " हे चित्रा ! तुम परियों के देश के बारे में जानती हो । तुमने अपनी कहानी में तेज दौडने वाले घोडे के बारे में बतलाया था। बताओ , उन्होने उसे कहाँ बाँधा था ? उस घोडे पर एक दिन को चढने के लिए मै अपना महल देने को तैयार हूँ , तब मै इस संसार के विस्तार को देख सकूँगा । नहीं , वह हमारे सामने गिद्ध का बच्चा है।यदि उस ( गिद्ध के बच्चे ) के समान मेरे पंख होते जो उस आकाश का स्वामी है जो मेरे राज्य से बहुत बडा है तो मै हिमालय की सबसे ऊँची चोटी पर पहुँच जाता जहाँ गुलाबी प्रकाश विदा होने से पहले बर्फ पर बहुत देर तक ठहरता है। तब मै चारो ओर देखने का प्रयत्न करता। मैने इन स्थानों को अब तक क्यों नहीं देखा है और न देखने की कोशिश की है ? मुझे बताओ , हमारे इस पीतल के द्वार के बाहर क्या है ? तब उनमें से एक ने उत्तर दिया, " सुन्दर राजकुमार ! महल से बाहर सर्वप्रथम नगर है , तब मन्दिर , बाग और कुन्ज हैं । उसके बाद मैदान , बहते हुए नाले तथा कोसों तक खेत ही खेत तथा जंगल हैं। उसके बाद महाराजा बिम्बसार का राज्य है और उसके बाद विस्तृत संसार है जहाँ करोडों लोग रहते हैं ।" सिद्धार्थ ने कहा , " ठीक है, सन्देश भिजवा दो कि चन्ना मेरे रथ को तैयार करे । कल दोपहर को मै रथ पर सवार होकर जाऊँगा और उस ओर की मानव जाति को देखूँगा ।"
इस पर उन्होने राजा से कहा, " स्वामी, आपके पुत्र चाहते हैं कि रथ को दोपहर के समय जोत दिया जाय ताकि वह सवार होकर बाहर जा सकें और मानव जाति को देख सकें ।"
चतुर राजा ने कहा, " उसे अब सबकुछ देखना चाहिए। लेकिन मुनादी करने वाले सब लोगों को बता दे कि हमारे नगर को सजाया जाए । कोई भी घृणा उत्पन्न करने वाला दृश्य उसके सामने न आए। कोई भी अन्धा या अपाहिज , बीमार या वृद्धावस्था से पीडित , कोढी तथा बहुत कमजोर व्यक्ति बाहर न निकले । " इसीलिए सडकों के पत्थरों पर झाडू लगा दी गयी।
तब भिस्तियों ने अपनी मश्कों से पानी छिडका । स्त्रियों ने अपने-अपने द्वारों पर ताजा रोली डाली , नई फूलमालाएँ बनाईं। उन्होने अपने द्वार पर तुलसी के पौधों को सजाया । दीवारों पर बने हुए चित्रों को ब्रुश से रंग लगाकर चमका दिया गया। पेडों को झण्डियों से भर दिया गया। देवी-- देवताओं की मूर्तियों को सुनहरा कर दिया गया। चौराहों पर पत्तियों से बने मन्दिरों में सूर्य देवता तथा अन्य देवता चमक रहे थे। इस प्रकार शहर एक जादू की नगरी की राजधानी लगता था। मुनादी करने वाले ढोल तथा घण्टा बजाते जोर से घोषणा करते हुए गुजरे , " सभी नागरिकों ! राजा सुद्दोधन का आदेश है कि आज कोई भी बुरा दृश्य दिखाई न पडे । अन्धा, अपाहिज, बीमार, बहुत वृद्ध , कोढी तथा कोई कमजोर व्यक्ति बाहर न निकले , न कोई अपने शव को जलाए और न रात्रि तक उन्हें बाहर लाए । यह राजा सुद्दोधन का आदेश है।"
जब सिद्धार्थ अपने रथ में बैठकर बाहर निकले तो प्रत्येक वस्तु सुन्दर थी तथा सम्पूर्ण कपिलवस्तु में मकान सजाये गये थे। इस रथ को दो युवा बैल खींच रहे थे। जो बर्फ के समान सफेद थे। उनकी गर्दन के नीचे लटकती हुई खाल इधर - उधर को हिल रही थी। उनके बडे-बडे कूबड थे जिन पर झुर्रियां थीं जहाँ जुआ रखा हुआ था, जुए पर खुदाई का काम हो रहा था। तथा उस पर रोगन हो रहा था। लोग अब राजकुमार सिद्धार्थ का स्वागत कर रहे थे। तब उन्हें प्रसन्न देखना बहुत अच्छा लगता था। इन स्वामी भक्त अनुयायियों तथा मित्रवत लोंगो को देखकर सिद्धार्थ बडे प्रसन्न हुए। वे चमकदार वस्त्र पहने हुए थे तथा हँस रहे थे मानो जीवन बहुत अच्छा हो । राजकुमार सिद्धार्थ ने कहा, " संसार बहुत सुन्दर है। इसे मै बहुत पसन्द करता हूँ । यद्यपि ये लोग राजा नहीं हैं लेकिन भले तथा दयालू स्वभाव के हैं और मेरी बहनें दो परिश्रम करती हैं तथा सेवा करती हैं आकर्षक हैं। उन्हें इस प्रकार प्रसन्नचित्त होने के लिए मैने क्या किया है?"
( 3 )
LIGHT OF ASIA
A LONG NARRATIVE POEM
By-- SIR EDWIN ARNOLD
राजकुमार सिद्धार्थ ने आगे कहा, " यदि मैं इन्हें प्रेम करता हूँ तो इन बच्चों को क्या पता ? सामने शाक्य बालक है जिसने हमारे ऊपर फूल फेके थे । कृपया उसे ले आओ ताकि वह मेरे साथ रथ में घूम सके । इस प्रकार के राज्यों पर राज्य करना कितना अच्छा है। यदि ये मेरे बाहर आने के कारण प्रसन्न हैं तो इसमे कितना आनन्द है। यदि इन छोटे घरों में रहने वालों के पास नगर को प्रसन्न करने के लिए बहुत कुछ है तो मुझे बहुत--सी वस्तुओं की आवश्यकता नहीं है। चन्ना , इस रथ को द्वार के बाहर ले चलो ताकि मैं इस सुन्दर संसार को और अधिक देख सकूँ जिसे मैं अभी तक नहीं देख सका हूँ।"
अत: वे द्वार के बाहर चले गये। प्रसन्नता से भरे हुए लोगों की भीड रथ के चारो ओर हो गई । उनमें से कुछ बैलों के आगे दौडे और मालाएं फेंकी । कुछ ने बैलों के पुट्ठों को थपथपाया जो रेशम के समान कोमल थे। कुछ उनके लिए चावल तथा रोटियां ले आये। सभी चिल्ला रहे थे, " हमारे महान राजकुमार की जय हो । "
इस प्रकार सम्पूर्ण मार्ग प्रसन्न मुद्रा तथा सुन्दर दृश्यों से भरा हुआ था क्यों कि राजा सुद्दोधन का आदेश था कि ऐसा ही हो । तभी दयनीय दशा में एक व्यक्ति सडक के बीच में आ गया। वह उस टूटे - फूटे घर से बाहर निकल आया जहाँ वह छिपा हुआ था। वह चिथडे कपडे पहने हुए था । वह बहुत थका हुआ तथा गन्दा था । वह अत्यथिक वृद्ध था। उसकी त्वचा सूखी थी तथा उसका रंग धूप से काला हो गया था। उसकी हड्डियों पर मांस नहीं था । और उसकी खाल उनसे इस प्रकार चिपटी हुई थी जैसे पशु का चमडा धूप उसकी हड्डियों से चिपक जाता है । वृद्धावस्था के कारण उसकी कमर झुक गई थी। विगत समय में बहुत रोने से उसकी आँखों में आँसुओं की कीचड जम गई थी । पानी बहनें से उसकी आँखें धुंधली हो गयी थीं । उसके जबडे दाँत रहित थे । उसे लकवा मार गया था । इतने अधिक लोगों को इतने आनन्द से देखकर वह भयभीत हो गया था । उसके जबडे दाँतरहित थे । उसके दुबले - पतले हाथ में एक घिसा हुआ डण्डा था । जिससे उसका काँपता हुआ शरीर सधा हुआ था । दूसरा हाथ पसलियों पर रखा हुआ था । जहाँ से उसकी साँस हाँफती हुई चल रही थी।
उस व्यक्ति ने कराह कर कहा , " भिक्षा दो , दयावान व्यक्तियों ! क्यों कि कल या परसों मै मर जाऊँगा । " तब कफ से उसका गला रुक गया परन्तु फिर भी उसने अपना हाथ फैलाया । उसकी आँखें टिमटिमा रही थीं । वह कष्ट के झटकों से कराहते हुए भी भिक्षा माँग रहा था । जो व्यक्ति उसके चारो ओर खडे थे उन्होने उसे एक ओर खींच लिया और यह कहते हुए उसे सडक से एक ओर धकेल दिया , " क्या तुम राजकुमार को नहीं देखते हो ? अपने रहने के स्थान में ही चले जाओ । "
लेकिन सिद्धार्थ ने चिल्लाकर कहा , " उसे वहीं रहने दें । ( उन्होने पूछा ) चन्ना ! यह क्या वस्तु है ? जो मनुष्य जैसी लगती है । लेकिन वह मनुष्य जैसा केवल देखने से लगता है । वह झुका हुआ है । वह बडा दयनीय, भयानक तथा दु:खी है । क्या कुछ मनुष्य उसके समान जन्म लेते हैं ? उसके कराहकर यह कहने से कि " कल या परसों मै मर जाऊँगा " क्या अर्थ है ? क्या उसे भोजन नही मिला जिससे उसकी हड्डियां बाहर निकल आयी हैं ? उस पर क्या दु:ख आ पडा है ? "
प्रिय बच्चों !
शेष भाग
अागे में---------------
By PREM KUMAR GUPTA
AIC INSTITUTE KANPUR
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