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Maths & Chemistry By Dr.V.K.Omar
खनिज और
अयस्क को
परिभाषित कीजिए
|
खनिज प्रकृति में पृथ्वी के अंदर धातुएँ तथा उनके यौगिक जिस रूप में पाए जाते हैं उनको खनिज कहते हैं जैसे कि कॉपर पायराइट एक खनिज है जिसमें मुख्य रुप से कॉपर और आयरन धातु उपस्थित होती हैं |
अयस्क जिस खनिज से किसी धातु को प्रचुर मात्रा में कम व्यय पर आसानी से प्राप्त किया जा सके उसको उस विशिष्ट धातु का अयस्क कहते हैं |
कॉपर का मुख्य अयस्क कॉपर पायराइट एलमुनियम का मुख्य अयस्क बॉक्साइट है लैड को गैलेना से प्राप्त करते हैं
खनिज एवं अयस्क
में अंतर
: सभी अयस्क खनिज होते हैं किंतु सभी खनिज अयस्क नहीं होते हैं I वही खनिज अयस्क कहलाते हैं जिनसे आर्थिक दृस्टि से धातु का धातुकर्म फायदे मंद हो I
आधात्रि अथवा मैट्रिक्स किसे कहते हैं ?
अयस्क में प्रायः पत्थर के टुकड़े, मिट्टी के कण, कंकड़, बालू, चूने का पत्थर तथा अन्य पदार्थ अपद्रव्य के रूप में उपस्थित होते हैं इन अपद्रव्यों को जो अशुद्धियों के रूप में अयस्क में उपस्थित होती हैं आधात्रि अथवा मैट्रिक्स कहते हैं I
किन्हीं दो
सल्फाइड बॉक्साइट अयस्कओं के
नाम लिखिए |
सल्फाइड अयस्क कॉपर पायराइट(CuFeS2) सिल्वर ग्लांस या अर्जेंटटाइट(AgS)
ऑक्साइड Cuprite(Cu2O)
बॉक्साइट(Al2O3.2H2O)
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अयस्क का
सांद्रण करना क्यों आवश्यक है ?सांद्रण में प्रयुक्त होने वाली विधियों के
नाम बताइए |
अयस्क में प्रायः रेत, मिट्टी, पत्थर आदि की अशुद्धियां होती हैं जिन्हें अधात्रि या मैट्रिक्स कहते हैं अयस्क से इन अशुद्धियों को पृथक करना अयस्क का सांद्रण कहलाता है
इसके के सांद्रण की मुख्य विधियां निम्नलिखित हैं :
1- गुरुत्व पृथक्करण विधि
2- फेन उत्प्लावन विधि
3- विद्युत चुंबकीय पृथक्करण विधि
फेन उत्प्लावन विधि
फेन उत्प्लावन विधि से सामान्यतः सल्फाइड़ अयस्क का सांद्रण किया जाता है यह विधि अयस्क तथा गैंग की किसी द्रव से भीगने की प्रकृति पर निर्भर करती है तेल और जल के मिश्रण में सल्फाइड अयस्क को डालने पर सल्फाइड अयस्क के मुख्य रूप से तेल द्वारा और अयस्क में उपस्थित गैंग जल द्वारा भीगता है
इस विधि में अयस्क को कूटकर पीसकर छानकर एक टैंक में चीड़ का तेल या यूकेलिप्टिस तेल, पोटैशियम एथिल ज़ैंथेट व पानी के साथ मिश्रित कर वायु की प्रबल धारा प्रवाहित करते हैं | सल्फाइड अयस्क के कण तेल से भीग कर द्रव की सतह पर फैन या झाग के रूप में एकत्रित हो जाते हैं और पृथक कर लिए जाते हैं गैंग जल से भीग कर टैंक के पेंदे में बैठ जाता है इस प्रक्रम में तेल द्रव का पृष्ठ तनाव कम कर के स्थाई झाग बनाता है जिससे अयस्क के कण अधिषोसित हो जाते हैं |
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निस्तापन एवं भर्जन से
क्या समझते हैं ?
निस्तापन सांद्रित अयस्क को उसके गलनांक के नीचे वायु की उपस्थिति या कम मात्रा में (बिना पिघलाये) गर्म करके उसमें से नमी हाइड्रेशन जल तथा अन्य वाष्पशील पदार्थों को बाहर निकालने की क्रिया को निस्तापन कहते हैं
धातु कार्बोनेटों तथा हाइड्रोक्साइडओं को गर्म करके कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल निष्कासित कर के धातु ऑक्साइडओं को प्राप्त करना भी निस्तापन कहलाता है निस्तापन प्रक्रम के फल स्वरुप अयस्क शुष्क तथा छिद्रयुक्त हो जाता है
जैसे बॉक्साइट अयस्क का निस्तापन करने पर उसमें उपस्थित हाइड्रेशन जल वाष्पित होकर बाहर निकल जाता है
Al2O3.2H2O
→ Al2O3 + 2H2O
भर्जन सांद्रित अयस्क को अकेले या किसी अन्य पदार्थ के साथ मिलाकर उसके गलनांक से नीचे के ताप पर (बिना पिघलाए) वायु की नियंत्रित मात्रा में गर्म करने की क्रिया को भर्जन कहते हैं I
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भर्जन क्रिया के द्वारा अयस्क के आंशिक या पूर्ण रूप से आक्सीकृत हो जाता है तथा अयस्क में उपस्थित सल्फर और एंटीमनी अशुद्धियां आक्सीकृत होकर वाष्पशील आक्साइडो के रूप में प्रथक हो जाती हैं
जैसे आयरन अयस्क का भर्जन निम्न प्रकार होता है :
4FeO + O2 →
2Fe2O3
भर्जन
की क्रिया परावर्तनी भट्टी में कराई जाती है
निस्तापन एवं भर्जन में अंतर स्पष्ट कीजिए |
निस्तापन में अयस्क को निम्न ताप पर वायु की अनुपस्थिति या कम मात्रा में गर्म किया जाता है जबकि
भर्जन मैं अयस्क को उच्च ताप पर बिना पिघलाए वायु की नियंत्रित मात्रा मैं गर्म किया जाता है
गालक क्या है समझाइए |
गालक उस पदार्थ को कहते हैं जो अयस्क में उपस्थित अगलनीय अशुद्धियों के साथ उच्च ताप पर क्रिया करके इनको आसानी से गला करके पृथक होने वाले पदार्थों के रूप में दूर कर देते हैं अशुद्धियों से गालक की क्रिया के फल स्वरुप बने गलनीय पदार्थ को धातुमल कहते हैं
धातु की अपेक्षा धातुमल हल्का होने के कारण पिघली हुई धातु की सतह के ऊपर तैरने लगता है इस धातु मल को आसानी पूर्वक चमचों की सहायता से अलग कर लिया जाता है l
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गालक के प्रकार
गालक दो
प्रकार के
होते हैं
क्षारीय गालक : वे गालक जो अम्लीय अशुद्धियों से क्रिया करके धातुमल बनाते हैं क्षारीय गालक कहलाते हैं जैसे मैग्नीशियम कार्बोनेट, कैलशियम कार्बोनेट आदि मुख्य क्षारीय गालक हैं
अम्लीय गालक वह गालक जो क्षारीय अशुद्धियों से क्रिया करके धातु मल बनाते हैं अम्लीय गालक कहलाते हैं सिलिका तथा बोरेक्स से मुख्य अम्लीय गालक हैं
प्रगलन किसे कहते हैं उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए |
निस्तापन तथा भर्जन क्रिया द्वारा प्राप्त अयस्क को कोक तथा उचित गालक को साथ मिलाकर उच्च ताप पर गर्म करने पिघलाने की क्रिया को प्रगलन कहते हैं इस क्रिया में अयस्क का गलित धातु मैं अपचयन हो जाता है अथवा धातु युक्त पदार्थ पिघल जाता है तथा गालक में उपस्थित अधात्री से क्रिया करके गलित धातु मल बना लेता है गलित धातुमल गलित धातु के ऊपर एक अलग परत के रूप में एकत्रित हो जाता है
कॉपर पायराइट के निष्कर्षण में भर्जित अयस्क मैं quartz और कोक मिलाकर मिश्रण को वात्या भट्टी में प्रगलित कराते हैं |
धातुओं के शोधन की मुख्य विधियां कौन-कौन सी है ?
धातुओं का शोधन करने के लिए अनेक विधियां प्रयुक्त की जाती हैं जो धातु की प्रकृति तथा उसमें उपस्थित अशुद्धियों पर निर्भर करती है
इनका विवरण निम्न प्रकार है
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विद्युत अपघटन विधि यह विधि धातुओं के शोधन की मुख्य विधि है इस विधि में अशुद्धि धातु को एनोड तथा शुद्ध धातु को
cathod बनाते हैं और धातु के लवण का विलयन विद्युत अपघट्य का कार्य करता है विद्युत अपघटन करने पर anode घुलने लगता है और अशुद्धियां विलयन में चली जाती हैं अथवा एनोड मड
के रूप में एनोड के नीचे एकत्रित हो जाती हैं जबकि शुद्ध धातु cathode पर जमा हो जाता है इस विधि का उपयोग चांदी, सोना आदि के शोधन में किया जाता है
द्रवण विधि इस विधि में कम गलनांक की धातुओं जैसे tin को पिघलाकर ढालू तल पर बहने दिया जाता है जिससे अशुद्धियां पीछे रह जाती हैं और धातु
बहकर अलग हो जाती है
आसवन विधि वाष्पशील धातुओं जैसे मरकरी ज़िंक को आसवन द्वारा शोधित किया जाता है
खर्पण विधि : इसमें अशुद्ध
धातु को वायु की उपस्थिति में गर्म किया जाता है जिससे धातु में उपस्थित अशुद्धियां आक्सीकृत होकर
वाष्प के रूप में पृथक हो जाती हैं और शुद्ध धातु बची रहती है खर्पण विधि सिल्वर में उपस्थित लेड को पृथक करने के लिए प्रयुक्त की जाती है |
परावर्तनी भट्टी
परावर्तनी भट्टी अग्निरोधक ईंटों
की दीवारों की बनी होती है इसमें मुख्य रूप से 3 भाग होते हैं:
अग्नि स्थान :यह वह स्थान है जहां ईधन जलाकर ऊष्मा प्रदान की जाती है
चूल्हा या भट्टी का तल यह भट्टी का वह स्थान है जहां पर घान या महीन पिसा हुआ अयस्क रखा जाता है
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चिमनी इस भाग से बनी हुई व्यर्थ गैसे बाहर निकल जाती हैं
कार्य विधि : - गर्म किए जाने वाले अयस्क के
बारीक महीन चूर्ण को भट्टी के तल यानी चूल्हा पर रखकर भट्टी को जला देते हैं गर्म कैसे उत्पन्न होती हैं और चूल्हे पर रखे हुए घान को गर्म कर देती हैं घान को तब तक गर्म करते हैं जिस पर उसकी नmi निकल जाए अथवा वायु की उपस्थिति में धान का आक्सीकरण हो जाए परंतु पिघलने ना पाए इस भट्टी में आग की लपटें छत से टकराकर चूल्हे पर रखे धान पड़ जाती हैं और उसे गर्म कर देती हैं इसी कारण इसे परावर्तनी भट्टी कहते हैं इस भट्टी का प्रयोग तांबा , लेड धातुओं के धातु कर्म में किया जाता है
परार्तनी भट्टी की विशेषताएं
इस भट्टी मैं ईंधन और घान का सीधा संपर्क नहीं होता है इसका ऑक्सीकरण और अपचयन दोनों प्रकार की क्रियाओं में प्रयोग किया जाता है इस भट्टी का उपयोग निस्तापन भर्जन प्रगलन तीनों के लिए किया जा सकता है
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वात्या भट्टी
वात्या भट्टी यह भट्टी चिमनी के आकार की होती है लगभग 25 से 26 मीटर ऊंचाई तथा छह से आठ मीटर ब्यास वाली होती है इस भट्टी का बाहरी भाग इस्पात का होता है
बना होता है तथा अंदर की दीवारों में अग्नि रोधक ईटों का स्तर लगा होता है
इस भट्टी के मुख्य तीन भाग हैं
हापर वात्या भट्टी के सबसे ऊपर वाले भाग को हापर कहते हैं इसमें घान को अंदर फेंकने के लिए कीप तथा कोन की व्यवस्था होती है कि कौन व्यवस्था के नीचे एक तरफ बेकार गैसों के निकलने के लिए द्वार बना होता है
बॉडी तथा बाश यह भाग दो कोणों से निर्मित होता है ऊपर वाले लंबे कौन को बाड़ी
तथा नीचे वाले
छोटे कौन को वाश कहते हैं बॉडी के ऊपरी भाग में गर्म गैसों के निकलने के लिए एक द्वार होता है जबकि के
निचले भाग में वाश मैं त्वीयर लगे होते हैं जिनके द्वारा गर्म हवा भट्टी के अंदर भेजी जाती है
चूल्हा
वात्या भट्टी के सबसे नीचे वाले भाग में चूल्हा
लगा होता है जिसमें
पिघली धातु द्रव के
रूप में
रहती है गलित धातु
के ऊपर
धातुमल तैरता रहता है भारी धातु को निकालने के लिए नीचे एक छेद होता है और इससे ठीक ऊपर वाले भाग में हल्के धातुमल
को
निकालने के लिए भी एक
द्वार होता है
कार्य विधि इस भट्टी में सांद्रित अयस्क का
अचयन किया जाता इसके लिए
सांद्रित आयस्क
मैं कोक तथा उचित मात्रा में गालक मिलाकर मिश्रण को हापर के द्वारा भट्टी में डाला जाता है यह मिश्रण भट्टी में ऊपर से नीचे की ओर जाने पर भिन्न-भिन्न बढ़ते तापों के संपर्क में आता जाता है और भट्टी में कई प्रकार की क्रियाए होती रहती हैं इस में मुख्य है अयस्क
मे उपस्थित आधात्री का गालक से क्रिया करके धातुमल बना लेना तथा धातु अयस्क का कोक द्वारा अपचयित होकर धातु को मुक्त करना
अयस्क से मुक्त हुई धातु पिघल कर चूल्हे में एकत्रित हो जाती है
वात्या भट्टी का उपयोग Fe, Cu,
Pb धातु के निष्कर्षण में करते हैं
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मफल भट्टी
मफल भट्टी सोना चांदी तथा जिंक धातु के निष्कर्षण में प्रयोग की जाती है इन धातुओं को गर्म करने पर
इनको
इंधन तथा उसके दहन से उत्पन्न गैसों के संपर्क में लाना ठीक नहीं होता है इस अवस्था में मफल भट्टी का प्रयोग किया जाता है |
इस भट्टी में दोनों तरफ से रेटोर्ट बने होते हैं काफी ऊंचा ताप सकते हैं इन रिटार्ड को मफल कहते हैं यह जलते हुए गर्म इंधन या उससे निकली हुई गर्म गैसों से घिरे होते हैं मफल को इंधन से उत्पन्न गर्म गैसों द्वारा चारों तरफ से बंद अवस्था में गर्म करते हैं धातु पिघल जाती है जिसे भट्टी में बने निकास के द्वारा बाहर निकाल लिया जाता है